Monday, September 1, 2014

                सब्जियों की गपशप

शिकायत भिन्डी ने की ,आवारा है 'बैंगन' मुआ ,
                   हरी ताज़ी देख मुझको ,रोज़ ही है छेड़ता
हाँ में हाँ उसकी मिलाई एक 'शिमला मिर्च'ने ,
               बोली बेपेंदी का है,कल हुआ था मुझ पर फ़िदा
बोला मुझसे लगती हूँ  मैं फूली फूली सेक्सी ,
                मैं ज़रा सी मुस्कराई,मेरे पीछे पड़  गया  
है बड़ा ही फ्लर्ट टाइप का ये बन्दा इस कदर,
            'लाल कॅप्सिकम'दिखी,उसकी तरफ वो बढ़ गया
बीन्स की पतली  फली ने मारा ताना रहने दे ,
              तू भी तो शौक़ीन ,नज़रें हर तरफ है  मारती
कल ही मैंने देखा तुझको आलू के आगोश में,
              कौनसी तू सती है ,जिसकी उतारें आरती
हरे धनिये ने कहा करते है हम भी इश्क़ पर,
               ऊपर ही ऊपर से सबको , सहला लेते रोज है
 मगर ये आलू भी सचमुच है गजब का इश्क़िया ,
              मिल के हरएक सब्जी के संग,ये  उड़ाता मौज है
सब्जियों में चल रही थी इस तरह की गूफ्तगू ,
              एक टमाटर नज़र आया ,लाल , प्यारा ,रसभरा
सब की सब ही बावली सी  उसके पीछे पड़ गयी ,
              और पकने लगा सबके साथ   उसका  माज़रा

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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