Tuesday, September 2, 2014

       बारिश में भीजेंगे

आ चल बारिश में भीजेंगे
बिना बाल्टी और रस्सी के ,सूरज पानी खींचा करता
और बादलों की टंकी में ,अपनी जब वह नभ में भरता
जब जब धरती प्यासी होती,फव्वारों सा बरसाता है
उस रिमझिम में जब नहाते है,हमको बड़ा मज़ा आता है
ना तो कोई सीमित धारा ,और ना  कोई चार दिवारी
खुल्ला विस्तृत बाथ रूम तब,बन जाती है दुनिया सारी
आसमान से आती बूँदें तन को चुभ चुभ सी जाती है
पूरे तन की मालिश करती हुई  हमें वो सहलाती  है
नीचे भू पर बहता पानी और ऊपर से आती   वर्षा 
उछल कूद कर,नाच भीगना  ,सचमुच मन देता है हर्षा
पानी की बूँदें शीतल  पर,तन मन में है आग लगाती
तनऔरवसन एक दिखते जब तन में सिहरन सी छाजाती
मन में प्रीत उमड़ आएगी ,एक दूसरे  पर रीझेंगे
आ चल बारिश में भीजेंगे

मदन मोहन बाहेती'घोटू'  

No comments:

Post a Comment