बदलाव -बढ़ती उमर का
पेट कल भी भरा करता था इसी से ,
पेट भरती आजकल भी तो यही है
फर्क ये है कल गरम फुलका नरम थी,
आजकल ये डबल रोटी हो गयी है
साथ जिसके जागते थे रात भर हम ,
जगाती है हमें अब भी ,रात भर वो
तब जगा करते थे मस्ती मौज में हम,
नहीं सोने देती है अब खांस कर वो
पहले सहला ,लगा देते आग तन में,
हाथ नाजुक ,कमल पंखुड़ी से नरम जो
हो गए है आजकल वो खुरदुरे से ,
अब भी राहत देते है खुजला बदन को
था ज़माना प्रेम से हमको खिलाती ,
कभी रसगुल्ला ,जलेबी या मिठाई
आजकल मिठाई पर पाबंदियां है ,
देती सुबहो शाम है हम को दवाई
रोकती हमको पुरानी हरकतों से ,
कहती ब्लडप्रेशर तुम्हारा बढ़ न जाये
जोश होता हिरण ,रहते मन मसोसे ,
बुढ़ापे ने हमको क्या क्या दिन दिखाये
मदन मोहन बाहेती''घोटू'
पेट कल भी भरा करता था इसी से ,
पेट भरती आजकल भी तो यही है
फर्क ये है कल गरम फुलका नरम थी,
आजकल ये डबल रोटी हो गयी है
साथ जिसके जागते थे रात भर हम ,
जगाती है हमें अब भी ,रात भर वो
तब जगा करते थे मस्ती मौज में हम,
नहीं सोने देती है अब खांस कर वो
पहले सहला ,लगा देते आग तन में,
हाथ नाजुक ,कमल पंखुड़ी से नरम जो
हो गए है आजकल वो खुरदुरे से ,
अब भी राहत देते है खुजला बदन को
था ज़माना प्रेम से हमको खिलाती ,
कभी रसगुल्ला ,जलेबी या मिठाई
आजकल मिठाई पर पाबंदियां है ,
देती सुबहो शाम है हम को दवाई
रोकती हमको पुरानी हरकतों से ,
कहती ब्लडप्रेशर तुम्हारा बढ़ न जाये
जोश होता हिरण ,रहते मन मसोसे ,
बुढ़ापे ने हमको क्या क्या दिन दिखाये
मदन मोहन बाहेती''घोटू'
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