आज कल
हो गया है आजकल कुछ इस तरह का सिलसिला
छोटे छोटे खेमो में ,बंटने लगा है काफिला
जी रहा हर कोई अपनी जिंदगी निज ढंग से ,
क्या करें शिकवा किसी से ,और किसी से क्या गिला
अहमियत परिवार , रिश्तों की भुलाती जा रही,
आत्मकेंद्रित हो रही है आजकल की पीढ़ियाँ
इस तरह से कमाने का छारहा सबमे जूनून,
जुटें है दिनरात चढ़ने तरक्की की सीढ़ियां
पहले कुछ करने की धुन में खपते है दिन रात सब,
बाद में फिर सोचते है,करे शादी,घर बसा
और उस पर नौकरीपेशा ही बीबी चाहिए ,
बदलने यूं लग गया है जिंदगी का फलसफा
थके हारे मियां बीबी,आते है जब तब कभी,
फोन से खाना मंगाया,खा लिया और सो गए
सुबह फिर उठ कर के भागें ,अपने अपने काम पर,
सिर्फ सन्डे वाले ही अब पति पत्नी हो गए
गए वो दिन जब बना पकवान ,सजधज शाम को,
पत्नियां ,पति की प्रतीक्षा ,किया करती प्यार से
पति आते,करते गपशप,चाय पीते चाव से,
रात को खाना खिलाती थी ,पका ,मनुहार से
आजकल बिलकुल मशिनी हो गयी है जिंदगी ,
किसी के भी पास ,कोई के लिए ना वक़्त है
बहन,भाई,बाप,माँ,ये सभी रिश्ते व्यर्थ है ,
मैं हूँ और मुनिया मेरी ,परिवार इतना फ़क़्त है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
हो गया है आजकल कुछ इस तरह का सिलसिला
छोटे छोटे खेमो में ,बंटने लगा है काफिला
जी रहा हर कोई अपनी जिंदगी निज ढंग से ,
क्या करें शिकवा किसी से ,और किसी से क्या गिला
अहमियत परिवार , रिश्तों की भुलाती जा रही,
आत्मकेंद्रित हो रही है आजकल की पीढ़ियाँ
इस तरह से कमाने का छारहा सबमे जूनून,
जुटें है दिनरात चढ़ने तरक्की की सीढ़ियां
पहले कुछ करने की धुन में खपते है दिन रात सब,
बाद में फिर सोचते है,करे शादी,घर बसा
और उस पर नौकरीपेशा ही बीबी चाहिए ,
बदलने यूं लग गया है जिंदगी का फलसफा
थके हारे मियां बीबी,आते है जब तब कभी,
फोन से खाना मंगाया,खा लिया और सो गए
सुबह फिर उठ कर के भागें ,अपने अपने काम पर,
सिर्फ सन्डे वाले ही अब पति पत्नी हो गए
गए वो दिन जब बना पकवान ,सजधज शाम को,
पत्नियां ,पति की प्रतीक्षा ,किया करती प्यार से
पति आते,करते गपशप,चाय पीते चाव से,
रात को खाना खिलाती थी ,पका ,मनुहार से
आजकल बिलकुल मशिनी हो गयी है जिंदगी ,
किसी के भी पास ,कोई के लिए ना वक़्त है
बहन,भाई,बाप,माँ,ये सभी रिश्ते व्यर्थ है ,
मैं हूँ और मुनिया मेरी ,परिवार इतना फ़क़्त है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
No comments:
Post a Comment