पड़ी रिश्तों पर फफूंदी
जब से मैंने खोलकर संदूक देखा ,
पुरानी यादें सताने लग गयी है
बंद बक्से में पड़े रिश्ते पुराने ,
महक सीलन की सी आने लग गयी है
फफूंदी सी रिश्तों पर लगने लगी है
चलो इनको प्यार की कुछ धूप दे दे
पुराना अपनत्व फिर से लौट आये ,
रूप उनको ,वक़्त के अनुरूप दे दें
दूध चूल्हे पर चढ़ा ,यदि ना हिलाओ,
उफन, बाहर पतीले से निकल जाता
बिन हिलाये ,आग पर सब चढ़ा खाना ,
चिपक जाता है तली से ,बिगड़ जाता
बंद रिश्ते बिगड़ जाते वक़्त के संग ,
इसलिए है उनमे कुछ हलचल जरूरी
रहे चलता ,मिलना जुलना ,आना जाना ,
तभी नवजीवन मिले , हो दूर दूरी
चटपटापन भी जरूरी जिंदगी में ,
मीठी बातों से सिरफ़ ना काम चलता
बनता है अचार कच्ची केरियों से ,
मीठे आमों का नहीं अचार डलता
खट्टे मीठे रिश्तों को रख्खे मिला कर
दूध को ना उफनने दें ,हम हिला कर
इससे पहले क्षीण हो क्षतिग्रस्त रिश्ते ,
आओ इनको हम नया एक रूप दे दें
फफूंदी सी रिश्तो पर लगने लगी है,
चलो इनको प्यार की कुछ धूप दे दें
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
जब से मैंने खोलकर संदूक देखा ,
पुरानी यादें सताने लग गयी है
बंद बक्से में पड़े रिश्ते पुराने ,
महक सीलन की सी आने लग गयी है
फफूंदी सी रिश्तों पर लगने लगी है
चलो इनको प्यार की कुछ धूप दे दे
पुराना अपनत्व फिर से लौट आये ,
रूप उनको ,वक़्त के अनुरूप दे दें
दूध चूल्हे पर चढ़ा ,यदि ना हिलाओ,
उफन, बाहर पतीले से निकल जाता
बिन हिलाये ,आग पर सब चढ़ा खाना ,
चिपक जाता है तली से ,बिगड़ जाता
बंद रिश्ते बिगड़ जाते वक़्त के संग ,
इसलिए है उनमे कुछ हलचल जरूरी
रहे चलता ,मिलना जुलना ,आना जाना ,
तभी नवजीवन मिले , हो दूर दूरी
चटपटापन भी जरूरी जिंदगी में ,
मीठी बातों से सिरफ़ ना काम चलता
बनता है अचार कच्ची केरियों से ,
मीठे आमों का नहीं अचार डलता
खट्टे मीठे रिश्तों को रख्खे मिला कर
दूध को ना उफनने दें ,हम हिला कर
इससे पहले क्षीण हो क्षतिग्रस्त रिश्ते ,
आओ इनको हम नया एक रूप दे दें
फफूंदी सी रिश्तो पर लगने लगी है,
चलो इनको प्यार की कुछ धूप दे दें
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
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