क्यों हर बार छला जाता है
नेताओं के झूंठे झूंठे ,वादों पर फिसला जाता है
मंहगाई के बोझ तले वो,रोज रोज कुचला जाता है
बहुत जरूरी सुविधाएं भी,उसको होती नहीं मुहैया,
बिजली कभी चली जाती है ,पानी कभी चला जाता है
आलू प्याज हो रहे मंहगे,और चीनी में आग लगी है,
कैसे घर का पेट भरे वो ,बेचारा पगला जाता है
स्कूल फीस ,रेल का भाड़ा ,सब चीजों के दाम बढ़ गए ,
दुनिया भर की चिंताओं से,वो होता दुबला जाता है
एक पाट दफ्तर,एक घर का,मिडिल क्लास सा फँसा हुआ वो,
दो पाटों के बीच बिचारा,उसका दिल दहला जाता है
मजबूरी में चुप रहता है ,मुंह से चूं तक नहीं निकलती ,
बोझ गृहस्थी का इतना है,उसका दम निकला जाता है
हे भगवान ,बता दे ,मुझको,क्यों ये तेरा अपना बंदा ,
क्यों अक्सर तेरे ही बंदों से हर बार छला जाता है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
नेताओं के झूंठे झूंठे ,वादों पर फिसला जाता है
मंहगाई के बोझ तले वो,रोज रोज कुचला जाता है
बहुत जरूरी सुविधाएं भी,उसको होती नहीं मुहैया,
बिजली कभी चली जाती है ,पानी कभी चला जाता है
आलू प्याज हो रहे मंहगे,और चीनी में आग लगी है,
कैसे घर का पेट भरे वो ,बेचारा पगला जाता है
स्कूल फीस ,रेल का भाड़ा ,सब चीजों के दाम बढ़ गए ,
दुनिया भर की चिंताओं से,वो होता दुबला जाता है
एक पाट दफ्तर,एक घर का,मिडिल क्लास सा फँसा हुआ वो,
दो पाटों के बीच बिचारा,उसका दिल दहला जाता है
मजबूरी में चुप रहता है ,मुंह से चूं तक नहीं निकलती ,
बोझ गृहस्थी का इतना है,उसका दम निकला जाता है
हे भगवान ,बता दे ,मुझको,क्यों ये तेरा अपना बंदा ,
क्यों अक्सर तेरे ही बंदों से हर बार छला जाता है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
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