खुशबू
चाहे कितना भी मंहगा हो ,एक पत्थर का टुकड़ा है ,
मगर सुहाती है सबको ही ,जगमग एक नगीने की
जब खिलता है पुष्प ,हमेशा, बगिया को महकाता है ,
उसकी खुशबू सबको भाती ,आग बुझाती सीने की
मगर हसीनों में सुंदरता और महक दोनों होते,
अंग अंग फूलों सा नाजुक,मुख पर चमक नगीने की
लेकिन माशूक जब मस्ती मे ,अपना तन महकाती है,
भड़काती है आग जिस्म की,खुशबू मस्त पसीने की
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
चाहे कितना भी मंहगा हो ,एक पत्थर का टुकड़ा है ,
मगर सुहाती है सबको ही ,जगमग एक नगीने की
जब खिलता है पुष्प ,हमेशा, बगिया को महकाता है ,
उसकी खुशबू सबको भाती ,आग बुझाती सीने की
मगर हसीनों में सुंदरता और महक दोनों होते,
अंग अंग फूलों सा नाजुक,मुख पर चमक नगीने की
लेकिन माशूक जब मस्ती मे ,अपना तन महकाती है,
भड़काती है आग जिस्म की,खुशबू मस्त पसीने की
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
No comments:
Post a Comment