बंधन- धागों का
बचपन में,मेरी माँ ने,
मेरे गले में ,एक काला धागा पहनाया था
मुझे जमाने की बुरी नज़र से बचाया था
जब मैं थोड़ा बड़ा हुआ,
तो हुआ मेरा यज्ञोपवीत संस्कार
और धूमधाम और कर्मकांड के बाद,
तीन धागों की जनेऊ ,
मुझे पहनाई गयी ,अबकी बार
जवान होने पर,
इन्ही धागों में था फूलों को गूंथ डाला
और मेरे गले में ,
मेरी दुल्हन ने डाली थी वरमाला
और मैंने भी उसके गले में ,
मंगलसूत्र पहनाया था
और इन्ही धागों ने ,
मुझे गृहस्थी के जाल में फंसाया था
कभी बहना ने मेरी कलाइ पर,
राखी का धागा बाँध ,
अपने प्यार को दर्शाया
कभी पंडितों से,
हर पूजा और कर्मकांड के बाद ,
कलाई पर कलावे का धागा बंधवाया
जीवन भर इंसान ,
उलझा हुआ रहता है, धागों के जाल में
और उसकी अरथी को भी,
धागों से बाँधा जाता है,अंतकाल में
जीवन की सुई में ,इंसान,
धागों की तरह ,बार बार पिरोया जाता है ,
और इसी तरह उम्र कटती है
और मरने बाद ,किसी दीवार पर ,
इन्ही धागों से ,उसकी तस्वीर लटकती है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
बचपन में,मेरी माँ ने,
मेरे गले में ,एक काला धागा पहनाया था
मुझे जमाने की बुरी नज़र से बचाया था
जब मैं थोड़ा बड़ा हुआ,
तो हुआ मेरा यज्ञोपवीत संस्कार
और धूमधाम और कर्मकांड के बाद,
तीन धागों की जनेऊ ,
मुझे पहनाई गयी ,अबकी बार
जवान होने पर,
इन्ही धागों में था फूलों को गूंथ डाला
और मेरे गले में ,
मेरी दुल्हन ने डाली थी वरमाला
और मैंने भी उसके गले में ,
मंगलसूत्र पहनाया था
और इन्ही धागों ने ,
मुझे गृहस्थी के जाल में फंसाया था
कभी बहना ने मेरी कलाइ पर,
राखी का धागा बाँध ,
अपने प्यार को दर्शाया
कभी पंडितों से,
हर पूजा और कर्मकांड के बाद ,
कलाई पर कलावे का धागा बंधवाया
जीवन भर इंसान ,
उलझा हुआ रहता है, धागों के जाल में
और उसकी अरथी को भी,
धागों से बाँधा जाता है,अंतकाल में
जीवन की सुई में ,इंसान,
धागों की तरह ,बार बार पिरोया जाता है ,
और इसी तरह उम्र कटती है
और मरने बाद ,किसी दीवार पर ,
इन्ही धागों से ,उसकी तस्वीर लटकती है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
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