सुख पत्नी सेवा का
जिसने सच्चे मन से मेरी,सेवा की जीवन भर सारे
उस पत्नी की सेवा स्रुषमा में मैंने कुछ रोज गुजारे
जब से आई ब्याह घर मेरे ,कर निज तनमन मुझको अर्पित
सच्ची सेवा और लगन से ,पूर्ण रूप से रही समर्पित
जिसने मुझको सुख देने को ,ही अपना सच्चा सुख माना
जिसकी बांहे थाम कट गया ,अब तक जीवन सफर सुहाना
मेरी हर पीड़ा,मुश्किल में,जिसने मुझको दिया सहारा
हर पल मेरा सम्बल बन के ,जिसने सब घरबार संभाला
रही हमसफ़र ,किन्तु आजकल,मुश्किल होती थी चलने में
क्योंकि समय के साथ हो गया ,क्षरण अस्थियों का घुटने में
शल्य चिकित्सा से घुटने का ,उनने करा लिया प्रत्यार्पण
थोड़े दिन तक ,उनकी सारी ,गतिविधियों पर लगा नियंत्रण
थी अक्षम ,बिस्तर पर सीमित,बहुत दर्द और पीड़ा सहती
मुझ बोझ पड़े कम से कम ,फिर भी उसकी कोशिश रहती
पर मैंने उनकी सेवा की ,जितना कुछ भी मैं कर पाया
उनकी आँखों में मजबूरी,धन्यवाद का भाव समाया
सेवा में ही सच्चा सुख है, बात समझ आ गयी हमारे
पत्नी की सेवा स्रुषमा में ,मैंने जब कुछ रोज गुजारे
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
जिसने सच्चे मन से मेरी,सेवा की जीवन भर सारे
उस पत्नी की सेवा स्रुषमा में मैंने कुछ रोज गुजारे
जब से आई ब्याह घर मेरे ,कर निज तनमन मुझको अर्पित
सच्ची सेवा और लगन से ,पूर्ण रूप से रही समर्पित
जिसने मुझको सुख देने को ,ही अपना सच्चा सुख माना
जिसकी बांहे थाम कट गया ,अब तक जीवन सफर सुहाना
मेरी हर पीड़ा,मुश्किल में,जिसने मुझको दिया सहारा
हर पल मेरा सम्बल बन के ,जिसने सब घरबार संभाला
रही हमसफ़र ,किन्तु आजकल,मुश्किल होती थी चलने में
क्योंकि समय के साथ हो गया ,क्षरण अस्थियों का घुटने में
शल्य चिकित्सा से घुटने का ,उनने करा लिया प्रत्यार्पण
थोड़े दिन तक ,उनकी सारी ,गतिविधियों पर लगा नियंत्रण
थी अक्षम ,बिस्तर पर सीमित,बहुत दर्द और पीड़ा सहती
मुझ बोझ पड़े कम से कम ,फिर भी उसकी कोशिश रहती
पर मैंने उनकी सेवा की ,जितना कुछ भी मैं कर पाया
उनकी आँखों में मजबूरी,धन्यवाद का भाव समाया
सेवा में ही सच्चा सुख है, बात समझ आ गयी हमारे
पत्नी की सेवा स्रुषमा में ,मैंने जब कुछ रोज गुजारे
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
No comments:
Post a Comment