मैं अब भी हूँ तुमसे डरता
आया बुढ़ापा ,बिगड़ी सेहत
मुझसे अब ना होती मेहनत
मैं ज्यादा भी ना चल पाता
और जल्दी ही हूँ थक जाता
जब से काटे अग्नि चक्कर
स्वाद प्यार का तेरे चख कर
बना हुआ तब से घनचक्कर
आगे पीछे काटूं चक्कर
इसी तरह बस जीवन भर मैं
नाचा खूब इशारों पर मैं
मुझमे अब सामर्थ्य नहीं
लेकिन इसका अर्थ नहीं है
मेरा प्यार हो गया कुछ कम
हाजिर सेवा में हूँ हरदम
इस चक्कर से नहीं उबरता
मैं अब भी हूँ तुमसे डरता
अब भी हूँ मैं तुम पर मोहित
अब भी तुम पर पूर्ण समर्पित
वैसा ही पगला दीवाना
आशिक़ हूँ मैं वही पुराना
भले हो गयी कम तत्परता
तुम बिन मेरा काम न चलता
पका तुम्हारे हाथों खाना
अब भी लगता मुझे सुहाना
स्वाद तुम्हारे हाथों में है
मज़ा तुम्हारी बातों में है
तुम्हारी मुस्कान वही है
रूप ढला ,पर शान वही है
अब भी तुम उतनी ही प्यारी
पूजा करता हूँ तुम्हारी
नित्य वंदना भी हूँ करता
मैं अब भी हूँ तुम से डरता
साथ जवानी ने है छोड़ा
अब मैं बदल गया हूँ थोड़ा
सर पर चाँद निकल आयी है
काया भी कुछ झुर्रायी है
और तुम भी तो बदल गयी हो
पहले जैसी रही नहीं हो
हिरणी जैसी चाल तुम्हारी
आज हुई हथिनी सी प्यारी
ह्रष्ट पुष्ट और मांसल है तन
और ढलान पर आया यौवन
रौनक ,सज्जा साज नहीं है
जीने का अंदाज वही है
वो लावण्य रहा ना तन पर
लेकिन फिर भी तुम्हे देख कर
ठंडी ठंडी आहें भरता
मैं अब भी हूँ तुमसे डरता
भले पड गयी तुम कुछ ढीली
पर उतनी ही हो रौबीली
चलती हो तुम वही अकड़ कर
काम कराती सभी झगड़ कर
मैं झुकता तुम्हारे आगे
पूरी करता सारी मांगें
कभी कभी ज्यादा तंग होकर
जब गुस्से से जाता हूँ भर
उभरा करते विद्रोही स्वर
तो करीब तुम मेरे आकर
अपने पास सटा लेती हो
करके प्यार,पटा लेती हो
झट से पिघल पिघल मैं जाता
तुम्हारे रंग में रंग जाता
चाल पुरानी पर हूँ चलता
मै अब भी हूँ तुमसे डरता
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
आया बुढ़ापा ,बिगड़ी सेहत
मुझसे अब ना होती मेहनत
मैं ज्यादा भी ना चल पाता
और जल्दी ही हूँ थक जाता
जब से काटे अग्नि चक्कर
स्वाद प्यार का तेरे चख कर
बना हुआ तब से घनचक्कर
आगे पीछे काटूं चक्कर
इसी तरह बस जीवन भर मैं
नाचा खूब इशारों पर मैं
मुझमे अब सामर्थ्य नहीं
लेकिन इसका अर्थ नहीं है
मेरा प्यार हो गया कुछ कम
हाजिर सेवा में हूँ हरदम
इस चक्कर से नहीं उबरता
मैं अब भी हूँ तुमसे डरता
अब भी हूँ मैं तुम पर मोहित
अब भी तुम पर पूर्ण समर्पित
वैसा ही पगला दीवाना
आशिक़ हूँ मैं वही पुराना
भले हो गयी कम तत्परता
तुम बिन मेरा काम न चलता
पका तुम्हारे हाथों खाना
अब भी लगता मुझे सुहाना
स्वाद तुम्हारे हाथों में है
मज़ा तुम्हारी बातों में है
तुम्हारी मुस्कान वही है
रूप ढला ,पर शान वही है
अब भी तुम उतनी ही प्यारी
पूजा करता हूँ तुम्हारी
नित्य वंदना भी हूँ करता
मैं अब भी हूँ तुम से डरता
साथ जवानी ने है छोड़ा
अब मैं बदल गया हूँ थोड़ा
सर पर चाँद निकल आयी है
काया भी कुछ झुर्रायी है
और तुम भी तो बदल गयी हो
पहले जैसी रही नहीं हो
हिरणी जैसी चाल तुम्हारी
आज हुई हथिनी सी प्यारी
ह्रष्ट पुष्ट और मांसल है तन
और ढलान पर आया यौवन
रौनक ,सज्जा साज नहीं है
जीने का अंदाज वही है
वो लावण्य रहा ना तन पर
लेकिन फिर भी तुम्हे देख कर
ठंडी ठंडी आहें भरता
मैं अब भी हूँ तुमसे डरता
भले पड गयी तुम कुछ ढीली
पर उतनी ही हो रौबीली
चलती हो तुम वही अकड़ कर
काम कराती सभी झगड़ कर
मैं झुकता तुम्हारे आगे
पूरी करता सारी मांगें
कभी कभी ज्यादा तंग होकर
जब गुस्से से जाता हूँ भर
उभरा करते विद्रोही स्वर
तो करीब तुम मेरे आकर
अपने पास सटा लेती हो
करके प्यार,पटा लेती हो
झट से पिघल पिघल मैं जाता
तुम्हारे रंग में रंग जाता
चाल पुरानी पर हूँ चलता
मै अब भी हूँ तुमसे डरता
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
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