नारी
कभी मोहिनी रूप धरे मोहित करती है ,
कभी रिझाया करती है वो ,बन कर रम्भा
कभी परोसा करती है पकवान सुहाने ,
अन्नपूर्णा देवी सी बन कर जगदम्बा
बन कर कभी बयार बसंती ,मन हर्षाती ,
कभी आग बरसाती बन कर लू का झोंका
कभी बरसती जैसे रिमझिम रिमझिम बारिश ,
कभी उग्र हो, रूप बनाती ,तूफानों का
ममतामयी कभी माँ बन कर स्नेह लुटाती,
कभी बहन बन ,बाँधा करती ,रक्षाबंधन
कभी बहू बन,करती सास ससुर की सेवा ,
जिस घर जाती ,वो आँगन,बन जाता उपवन
मात पिता का ख्याल रखे बेटों से ज्यादा ,
करती सेवा ,बेटी लगती सबको प्यारी
नर क्या,जिसे देवता तक भी समझ न पाते,
प्रभु की इतनी अद्भुत रचना होती नारी
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
कभी मोहिनी रूप धरे मोहित करती है ,
कभी रिझाया करती है वो ,बन कर रम्भा
कभी परोसा करती है पकवान सुहाने ,
अन्नपूर्णा देवी सी बन कर जगदम्बा
बन कर कभी बयार बसंती ,मन हर्षाती ,
कभी आग बरसाती बन कर लू का झोंका
कभी बरसती जैसे रिमझिम रिमझिम बारिश ,
कभी उग्र हो, रूप बनाती ,तूफानों का
ममतामयी कभी माँ बन कर स्नेह लुटाती,
कभी बहन बन ,बाँधा करती ,रक्षाबंधन
कभी बहू बन,करती सास ससुर की सेवा ,
जिस घर जाती ,वो आँगन,बन जाता उपवन
मात पिता का ख्याल रखे बेटों से ज्यादा ,
करती सेवा ,बेटी लगती सबको प्यारी
नर क्या,जिसे देवता तक भी समझ न पाते,
प्रभु की इतनी अद्भुत रचना होती नारी
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
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