बिहारी जी के दोहे और बिहार की राजनीति
महाकवि बिहारी जी का एक दोहा है -
"कहलाते एकत बसत ,अही,मयूर,मृग,बाघ
जगत तपोवन सो कियो,दीरघ,दाघ ,निदाघ "
(भावार्थ-भीषण गर्मी के कारण,एक दू सरे के दुश्मन
सर्प और मयूर या मृग और बाघ ,एक वृक्ष की छाँव
में ,साथ साथ बैठ ,गर्मी से बचने की कोशिश कर रहे है
गर्मी ने जगत को तपोवन की तरह बना दिया है )
आज बिहार की राजनैतिक स्तिथि भी ठीक वैसी ही है
और इसी से प्रेरित हो चार नए दोहे प्रस्तुत है
१
इक दूजे को गालियां ,देते थे जो रोज
इस चुनाव ने बदल दी ,उनकी सारी सोच
२
मोदी तेरे तेज से ,सभी हुए भयभीत
आपस में मिलते गले ,दिखा रहे है प्रीत
३
लोकसभा की हार की ,अब तक मन में टीस
साथ आगये सोनिया ,लालू और नितीश
४
बाहर दिखता मेल है, पर है मन में मैल
देखो क्या क्या कराता ,राजनीति का खेल
और अंत में फिर बिहारी जी का एक दोहा -
"नहिं पराग नहिं मधुर मधु,नहीं विकास इहि काल
अली कली से ही बंध्यो, आगे कौन हवाल "
इस दोहे को समयानुसार थोड़ा परिवर्तित कर दिया है -
"नहिं पराग नहिं मधुर मधु ,नहीं विकास इहि काल
लालू बंध्यो नितीश से , आगे कौन हवाल "
शुभम भवतु
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
महाकवि बिहारी जी का एक दोहा है -
"कहलाते एकत बसत ,अही,मयूर,मृग,बाघ
जगत तपोवन सो कियो,दीरघ,दाघ ,निदाघ "
(भावार्थ-भीषण गर्मी के कारण,एक दू सरे के दुश्मन
सर्प और मयूर या मृग और बाघ ,एक वृक्ष की छाँव
में ,साथ साथ बैठ ,गर्मी से बचने की कोशिश कर रहे है
गर्मी ने जगत को तपोवन की तरह बना दिया है )
आज बिहार की राजनैतिक स्तिथि भी ठीक वैसी ही है
और इसी से प्रेरित हो चार नए दोहे प्रस्तुत है
१
इक दूजे को गालियां ,देते थे जो रोज
इस चुनाव ने बदल दी ,उनकी सारी सोच
२
मोदी तेरे तेज से ,सभी हुए भयभीत
आपस में मिलते गले ,दिखा रहे है प्रीत
३
लोकसभा की हार की ,अब तक मन में टीस
साथ आगये सोनिया ,लालू और नितीश
४
बाहर दिखता मेल है, पर है मन में मैल
देखो क्या क्या कराता ,राजनीति का खेल
और अंत में फिर बिहारी जी का एक दोहा -
"नहिं पराग नहिं मधुर मधु,नहीं विकास इहि काल
अली कली से ही बंध्यो, आगे कौन हवाल "
इस दोहे को समयानुसार थोड़ा परिवर्तित कर दिया है -
"नहिं पराग नहिं मधुर मधु ,नहीं विकास इहि काल
लालू बंध्यो नितीश से , आगे कौन हवाल "
शुभम भवतु
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
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