प्रताड़ना
मेरे अंतर्वस्त्रों में क्या झांक रहे हो,
अपने अंतर्मन में जरा झाँक कर देखो
मैं सोने की,मेरा मूल्य आंकते हो क्या ,
थोड़ी अपनी भी औकात आंक कर देखो
यूं क्यों ताक झाँक करते हो नज़र बचा कर,
तुम्हारे मन के अंदर क्या जिज्ञासा है
एक झलक पा भी लोगे,क्या मिल जाएगा
पूर्ण न होती इससे मन की अभिलाषा है
मैं ही क्या,तुमको जो भी कोई दिखती है,
उसको आँखे फाड़ फाड़ घूरा करते तुम
कौन कामना तुम्हारी जो पडी अधूरी ,
हर नारी को देख ,जिसे पूरा करते तुम
लो मैं ही बतला देती हूँ इनके अंदर,
छिपे हुए है वो स्नेहिल ,ममता के निर्झर
जिनसे तुम्हारी माँ ने था दूध पिलाया ,
तुमको बचपन में ,अपनी गोदी में लेकर
जिनसे चिपका कर तुमको बाहों में बांधे,
कितनी बार गाल तुम्हारे चूमे होंगे
निज ममता के गौरव पर इतराई होगी,
जब तुम उसकी बाहों में आ झूमे होगे
नारी तन की सौष्टवता के ये प्रतीक है,
इनमे छिपी विधाता की वह अद्भुत रचना
जिस ज्वालामुखी की झलक ढूंढते हो तुम,
वो हर माँ के गौरव है,ममता का झरना
पर तुम्हारी नज़रें काली भँवरे जैसी ,
दिखला रही कलुषता है तुम्हारे मन की
तुम्हारी माँ,बहन सभी संग होती होगी ,
ये विडंबना है ,हर नारी के जीवन की
अरे कभी कुछ तो सोचो ,ये क्या करते हो ,
अपना गिरेबान में कभी ताक कर देखो
मेरे अंतर्वस्त्रों में क्या झाँक रहे हो ,
अपने अंतर्मन में जरा झाँक कर देखो
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
मेरे अंतर्वस्त्रों में क्या झांक रहे हो,
अपने अंतर्मन में जरा झाँक कर देखो
मैं सोने की,मेरा मूल्य आंकते हो क्या ,
थोड़ी अपनी भी औकात आंक कर देखो
यूं क्यों ताक झाँक करते हो नज़र बचा कर,
तुम्हारे मन के अंदर क्या जिज्ञासा है
एक झलक पा भी लोगे,क्या मिल जाएगा
पूर्ण न होती इससे मन की अभिलाषा है
मैं ही क्या,तुमको जो भी कोई दिखती है,
उसको आँखे फाड़ फाड़ घूरा करते तुम
कौन कामना तुम्हारी जो पडी अधूरी ,
हर नारी को देख ,जिसे पूरा करते तुम
लो मैं ही बतला देती हूँ इनके अंदर,
छिपे हुए है वो स्नेहिल ,ममता के निर्झर
जिनसे तुम्हारी माँ ने था दूध पिलाया ,
तुमको बचपन में ,अपनी गोदी में लेकर
जिनसे चिपका कर तुमको बाहों में बांधे,
कितनी बार गाल तुम्हारे चूमे होंगे
निज ममता के गौरव पर इतराई होगी,
जब तुम उसकी बाहों में आ झूमे होगे
नारी तन की सौष्टवता के ये प्रतीक है,
इनमे छिपी विधाता की वह अद्भुत रचना
जिस ज्वालामुखी की झलक ढूंढते हो तुम,
वो हर माँ के गौरव है,ममता का झरना
पर तुम्हारी नज़रें काली भँवरे जैसी ,
दिखला रही कलुषता है तुम्हारे मन की
तुम्हारी माँ,बहन सभी संग होती होगी ,
ये विडंबना है ,हर नारी के जीवन की
अरे कभी कुछ तो सोचो ,ये क्या करते हो ,
अपना गिरेबान में कभी ताक कर देखो
मेरे अंतर्वस्त्रों में क्या झाँक रहे हो ,
अपने अंतर्मन में जरा झाँक कर देखो
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
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