Sunday, September 13, 2015

घर घर मिटटी के चूल्हे हैं

        घर घर मिटटी के चूल्हे हैं

जो  बड़े रौब से कहते है ,हम घर के करता धरता  है
पर सभी जानते है उनपर ,बीबी का शासन चलता है
सब पति जोरू के है गुलाम ,बाहर गर्वित हो फूले  है
अपने हमाम में सब नंगे,घर घर मिट्टी के चूल्हे  है
हर युवा देखता ही रहता ,शादी का सपन  सुहाना है
शादी कर जब कि गृहस्थी के,चक्कर में बस फंस जाना है
फिर भी जाने क्यों ख़ुशी ख़ुशी ,घोड़ी पर चढ़ते दूल्हे है
अपने हमाम में सब नंगे ,घर घर मिटटी के चूल्हे है
सब लोग चाहते है  बेटा ,जो कुल का नाम चलाएगा
शादी करके वो पत्नी का ,लेकिन गुलाम हो जायेगा
माँ बाप ध्यान रखती बिटिया ,और बेटे उनको भूले है
अपने हमाम में सब नंगे ,घर घर मिट्टी के चूल्हे है
होता चुनाव तो हर पार्टी ,आश्वासन,भाषण देती है 
जब जाती जीत, किया करती ,वादों की ऐसी तैसी है
कुर्सी पर बैठ सभी नेता  ,अपने सब वादे  भूले  है
अपने हमाम में सब नंगे,घर घर मिटटी के चूल्हे है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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