श्वान और शंका
मैंने पूछा एक श्वान से ,श्वान महोदय ,
ये देखा है ,जब भी तुम करते लघुशंका
करने को यह कार्य पसंद तुमको आता है,
कोई कार का टायर या बिजली का खम्बा
कहा श्वान ने,जो निचेष्ट पडी रहती है ,
ऐसी चीजें ,मुझको बिल्कुल नहीं सुहाती
सदा खड़ा ही देखा करता हूँ मैं खम्बा,
आता मुझको क्रोध, ,टांग मेरी उठ जाती
और जहाँ तक बात कार के टायर की है,
कुछ करने के पहले उसे सूंघता हूँ मैं
दिनभर चलकर थका ,अगर आराम कर रहा ,
मुझे पसीने की खुशबू आती है उसमे
उसे छोड़,जब मिलता टायर कोई,जिसने,
कभी किसी भी ,भाई बहन को मेरे कुचला
उसको गीला कर देता मै मूत्रधार से ,
इसी तरह बस ,ले लेता हूँ ,अपना बदला
मुझ में भी है भरी भावना,भाईचारा ,
जो भी मुझे पालता ,करता बहुत प्यार हूँ
मुझमे और तुम इंसानो में फर्क यही है ,
मैं अपने मालिक संग रहता वफादार हूँ
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
मैंने पूछा एक श्वान से ,श्वान महोदय ,
ये देखा है ,जब भी तुम करते लघुशंका
करने को यह कार्य पसंद तुमको आता है,
कोई कार का टायर या बिजली का खम्बा
कहा श्वान ने,जो निचेष्ट पडी रहती है ,
ऐसी चीजें ,मुझको बिल्कुल नहीं सुहाती
सदा खड़ा ही देखा करता हूँ मैं खम्बा,
आता मुझको क्रोध, ,टांग मेरी उठ जाती
और जहाँ तक बात कार के टायर की है,
कुछ करने के पहले उसे सूंघता हूँ मैं
दिनभर चलकर थका ,अगर आराम कर रहा ,
मुझे पसीने की खुशबू आती है उसमे
उसे छोड़,जब मिलता टायर कोई,जिसने,
कभी किसी भी ,भाई बहन को मेरे कुचला
उसको गीला कर देता मै मूत्रधार से ,
इसी तरह बस ,ले लेता हूँ ,अपना बदला
मुझ में भी है भरी भावना,भाईचारा ,
जो भी मुझे पालता ,करता बहुत प्यार हूँ
मुझमे और तुम इंसानो में फर्क यही है ,
मैं अपने मालिक संग रहता वफादार हूँ
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
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