सोने की फ्रेम में जड़ी तस्वीर
मैंने अपने दिल के कोरे,
कैनवास पर सच्चे मन से
सुंदर सी एक तस्वीर बनाई थी ,
बड़ी लगन से
चाँद को चूमने की आशा लिए ,
एक मासूम विहंग
अपने पंख फैलाये ,गगन में,
उड़ रहा था स्वच्छंद
मैंने उस चित्र को ,
सोने की फ्रेम मे जड़वा ,
अपने ड्राइंग रूम में टांगा
यह सोच कर कि इससे ,
हो जाएगा सोने में सुहागा
पर मैं कितना गलत था
आज मुझे वो पंछी ,
अपने पंख पसारे ,
आसमान में उड़ता हुआ नहीं ,
सोने की फ्रैंम के पिंजरे में ,
छटपटाता नज़र आता है
कई बार सोने की फ्रेम में फंस ,
जीव कितना मजबूर हो जाता है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
मैंने अपने दिल के कोरे,
कैनवास पर सच्चे मन से
सुंदर सी एक तस्वीर बनाई थी ,
बड़ी लगन से
चाँद को चूमने की आशा लिए ,
एक मासूम विहंग
अपने पंख फैलाये ,गगन में,
उड़ रहा था स्वच्छंद
मैंने उस चित्र को ,
सोने की फ्रेम मे जड़वा ,
अपने ड्राइंग रूम में टांगा
यह सोच कर कि इससे ,
हो जाएगा सोने में सुहागा
पर मैं कितना गलत था
आज मुझे वो पंछी ,
अपने पंख पसारे ,
आसमान में उड़ता हुआ नहीं ,
सोने की फ्रैंम के पिंजरे में ,
छटपटाता नज़र आता है
कई बार सोने की फ्रेम में फंस ,
जीव कितना मजबूर हो जाता है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
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