अगर जो तुम नहीं मिलते
अगर जो तुम नहीं मिलते,तो फिर कुछ भी नहीं होता
तुम्हारे बिन , मेरा जीवन , यूं ही ठहरा ,वहीँ होता
न होती प्रीत राधा की ,तो वृन्दावन नहीं होते
न रचता रास ,जमुना तट ,मधुर वो क्षण नहीं होते
तुम्हारे प्यार की गंगा ,न मिलती मेरी यमुना से,
हमारी प्रीत के पावन ,मधुर संगम नहीं होते
न जाने तू कहाँ होती ,न जाने मैं कहीं होता
अगर जो तुम नहीं मिलते तो फिर कुछ भी नहीं होता
मनाने ,रूठने वाले ,वो पागलपन नहीं होते
उँगलियाँ चाटने वाले ,मधुर व्यंजन नहीं होते
ये मेरा जागना ,सोना ,रोज की मेरी दिनचर्या ,
यूं ही बिखरी हुई रहती ,अगर बंधन नहीं होते
हमारे साथ ये होता ,तो बिलकुल ना सही होता
अगर जो तुम नहीं मिलते तो फिर कुछ भी नहीं होता
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
अगर जो तुम नहीं मिलते,तो फिर कुछ भी नहीं होता
तुम्हारे बिन , मेरा जीवन , यूं ही ठहरा ,वहीँ होता
न होती प्रीत राधा की ,तो वृन्दावन नहीं होते
न रचता रास ,जमुना तट ,मधुर वो क्षण नहीं होते
तुम्हारे प्यार की गंगा ,न मिलती मेरी यमुना से,
हमारी प्रीत के पावन ,मधुर संगम नहीं होते
न जाने तू कहाँ होती ,न जाने मैं कहीं होता
अगर जो तुम नहीं मिलते तो फिर कुछ भी नहीं होता
मनाने ,रूठने वाले ,वो पागलपन नहीं होते
उँगलियाँ चाटने वाले ,मधुर व्यंजन नहीं होते
ये मेरा जागना ,सोना ,रोज की मेरी दिनचर्या ,
यूं ही बिखरी हुई रहती ,अगर बंधन नहीं होते
हमारे साथ ये होता ,तो बिलकुल ना सही होता
अगर जो तुम नहीं मिलते तो फिर कुछ भी नहीं होता
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
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