वाह वाही
कभी कभी ,ज्यादा वाहवाही
भी ला सकती है तबाही
गर्व के मारे आदमी ,
गुब्बारे सा फूल जाता है
अपने परायों का भेद भूल जाता है
पर जरा सा काँटा चुभने पर,
जब गुब्बारा फूटता है
तब भरम टूटता है
पर तब तक ,
बड़ी देर बड़ी हो चुकी होती है
पर क्या करें ,
वाहवाही आदमी की ,
सबसे बड़ी कमजोरी होती थी
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
कभी कभी ,ज्यादा वाहवाही
भी ला सकती है तबाही
गर्व के मारे आदमी ,
गुब्बारे सा फूल जाता है
अपने परायों का भेद भूल जाता है
पर जरा सा काँटा चुभने पर,
जब गुब्बारा फूटता है
तब भरम टूटता है
पर तब तक ,
बड़ी देर बड़ी हो चुकी होती है
पर क्या करें ,
वाहवाही आदमी की ,
सबसे बड़ी कमजोरी होती थी
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
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