Sunday, April 17, 2016

                      पकोड़ी पुराण               

सीधासादा बेसन घोलो ,डाल मसाला,झट से तल लो
बारिश के भीगे मौसम में ,इसका स्वाद,आप जी भर लो
दादी,नानी पड़नानी का ,वह युग एक पकोड़ी युग था  
गरम गरम सबके मनभाती ,खाने का अपना ही सुख था
कालांतर में वही पकोड़ी ,पकी कढ़ी संग,स्वाद बढ़ाया
और दही में ,जब वो डूबी ,दहीबड़ा बन कर  ललचाया
पालक,गोभी ,आलू ,बेंगन ,सब संग मिलजुल स्वाद निखारा
हुआ समय संग,युग परिवर्तन,अब बर्गर का युग है प्यारा 
वडापाव बन यही पकोड़ी ,बड़ी हुई,पहुंची घर घर में
मेदुवडा रूप धारण कर ,डूबी रही ,स्वाद सांभर में
भजिया कहीं,बड़ा या पेटिस ,नाम अलग पर स्वाद प्रमुख था
दादी,नानी,पड़नानी का ,वह युग एक पकोड़ी  युग था
युग बदला तो नव पीढ़ी ने इसको नए रूप में ढाला
दिया तिकोना रूप ,मसाला भर कर,बना समोसा प्यारा
चली पश्चिमी हवा ,पकोड़ी ,बन 'कटलेट'बड़ी इतराई
  दुनिया भर में ,नए रूप धर ,इसने थी पहचान बनाई
दिल्ली में थी आलू टिक्की ,अमेरिका में बन कर 'बर्गर'
'स्प्रिंगरोल' चीन में है तो,अरब देश में बनी 'फलाफल'   
जिसने देखा,वो ललचाया ,खाने इसे हुआ उन्मुख था
दादी,नानी,पड़नानी का ,वह युग एक पकोड़ी युग था

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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