हम बात तुम्हारी क्यों माने ?
हम बात तुम्हारी क्यों माने ?
क्या सिर्फ इसलिए कि बूढ़े ,जितने बुजुर्ग थे तुम्हारे
बरसों से करते आये है , ये आडम्बर सारे सारे
ये पारिवारिक परम्परा ,निभने की आवश्यकता है
आस्था से नहीं निभाया तो ,कोई अनिष्ट हो सकता है
तार्किक बुद्धि से सोचो तो ,ये सब लगते है बचकाने
हम बात तुम्हारी क्यों माने ?
हम अगर कहीं जाने को है और बिल्ली रस्ता काट गयी
तुम कहते हो कि रुक जाओ ,यह शकुन हुआ है सही नहीं
जो पड़ा सामने एकाक्षी या दिया किसी ने अगर छींक
तुमको वापस रुकना होगा ,ये शकुन हुआ है नहीं ठीक
ये तो नित की घटनाएं है ,होती रहती है अनजाने
हम बात तुम्हारी क्यों माने ?
तुम कहते मन्दिर जाओ पर,यदि सच्ची श्रद्धा ना मन में
तो फिर ढकोसला होता है ,क्या रख्खा है उस पूजन में
ये कृपा उसी परमेश्वर की ,सबके भंडार भर रहे है
हम उस पर चढ़ा चंद रूपये ,उसका अपमान कर रहे है
कुछ करते हम दिनचर्या सा ,और कुछ करते है दिखलाने
हम बात तुम्हारी क्यों माने ?
हम बात तुम्हारी ना सुनते ,टोका करते तुम नित्य हमें
हर बात तुम्हारी मानेंगे ,बस बतला दो औचित्य हमें
हम तर्क करें तो बहसबाज ,जो तुम कहते हो वही सही
पर दिल,दिमाग जो ना माने ,वो बात हमे मंजूर नहीं
हम वो सब करने को राजी ,जो सत्य हमारा दिल जाने
हम बात तुम्हारी क्यों माने ?
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
हम बात तुम्हारी क्यों माने ?
क्या सिर्फ इसलिए कि बूढ़े ,जितने बुजुर्ग थे तुम्हारे
बरसों से करते आये है , ये आडम्बर सारे सारे
ये पारिवारिक परम्परा ,निभने की आवश्यकता है
आस्था से नहीं निभाया तो ,कोई अनिष्ट हो सकता है
तार्किक बुद्धि से सोचो तो ,ये सब लगते है बचकाने
हम बात तुम्हारी क्यों माने ?
हम अगर कहीं जाने को है और बिल्ली रस्ता काट गयी
तुम कहते हो कि रुक जाओ ,यह शकुन हुआ है सही नहीं
जो पड़ा सामने एकाक्षी या दिया किसी ने अगर छींक
तुमको वापस रुकना होगा ,ये शकुन हुआ है नहीं ठीक
ये तो नित की घटनाएं है ,होती रहती है अनजाने
हम बात तुम्हारी क्यों माने ?
तुम कहते मन्दिर जाओ पर,यदि सच्ची श्रद्धा ना मन में
तो फिर ढकोसला होता है ,क्या रख्खा है उस पूजन में
ये कृपा उसी परमेश्वर की ,सबके भंडार भर रहे है
हम उस पर चढ़ा चंद रूपये ,उसका अपमान कर रहे है
कुछ करते हम दिनचर्या सा ,और कुछ करते है दिखलाने
हम बात तुम्हारी क्यों माने ?
हम बात तुम्हारी ना सुनते ,टोका करते तुम नित्य हमें
हर बात तुम्हारी मानेंगे ,बस बतला दो औचित्य हमें
हम तर्क करें तो बहसबाज ,जो तुम कहते हो वही सही
पर दिल,दिमाग जो ना माने ,वो बात हमे मंजूर नहीं
हम वो सब करने को राजी ,जो सत्य हमारा दिल जाने
हम बात तुम्हारी क्यों माने ?
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
No comments:
Post a Comment