यह तो कहने की बातें है
यह तो कहने की बातें है ,बिन गर्मी प्यार नहीं होता ,
मैंने तो बरफ़ के टुकड़ों को,आपस में चिपकते देखा है
ना अकलमन्द कोई होता है अक्लदाढ़ के आने से,
कितने ही अकल भरे करतब,बच्चों को करते देखा है
तन की ताक़त से भी ज्यादा,मन की शक्ति आवश्यक है ,
कितने अपँग ,लाचारों को, मंजिल पर पहुँचते देखा है
दफ्तर में दहाड़ा जो करते ,घर पर बनते भीगी बिल्ली,
कितने रौबीले साहबों को,बीबी से डरते देखा है
सागर का जल तो खारा है,मीठा जल होता नदियों का ,
फिर भी सागर से मिलने को,नदियों को उमड़ते देखा है
वो ऊपरवाला एक ही है,अल्लाह बोलो चाहे इश्वर ,
मजहब के नामपे बन्दों को ,आपस में झगड़ते देखा है
ना बरसे तो त्राहि त्राहि ,ज्यादा बरसे तो तबाही है ,
हर चीज की अति जब होती ,तो काम बिगड़ते देखा है
तक़दीर मेहरबां जब होती ,धन छप्पर फाड़ बरसता है,
परसु बन जाता परसराम ,तक़दीर संवरते देखा है
दुःख ,पीड़ा और तकलीफों में,अपने ही साथ निभाते है ,
फिर भी कुछ अपनो को अपनों से नफरत करते देखा है
जिन बच्चों पर सब कुछ वारा ,उनने ही किया तिरस्कृत है,
माँ बापों को उनके खातिर , दिन रात तड़फते देखा है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
यह तो कहने की बातें है ,बिन गर्मी प्यार नहीं होता ,
मैंने तो बरफ़ के टुकड़ों को,आपस में चिपकते देखा है
ना अकलमन्द कोई होता है अक्लदाढ़ के आने से,
कितने ही अकल भरे करतब,बच्चों को करते देखा है
तन की ताक़त से भी ज्यादा,मन की शक्ति आवश्यक है ,
कितने अपँग ,लाचारों को, मंजिल पर पहुँचते देखा है
दफ्तर में दहाड़ा जो करते ,घर पर बनते भीगी बिल्ली,
कितने रौबीले साहबों को,बीबी से डरते देखा है
सागर का जल तो खारा है,मीठा जल होता नदियों का ,
फिर भी सागर से मिलने को,नदियों को उमड़ते देखा है
वो ऊपरवाला एक ही है,अल्लाह बोलो चाहे इश्वर ,
मजहब के नामपे बन्दों को ,आपस में झगड़ते देखा है
ना बरसे तो त्राहि त्राहि ,ज्यादा बरसे तो तबाही है ,
हर चीज की अति जब होती ,तो काम बिगड़ते देखा है
तक़दीर मेहरबां जब होती ,धन छप्पर फाड़ बरसता है,
परसु बन जाता परसराम ,तक़दीर संवरते देखा है
दुःख ,पीड़ा और तकलीफों में,अपने ही साथ निभाते है ,
फिर भी कुछ अपनो को अपनों से नफरत करते देखा है
जिन बच्चों पर सब कुछ वारा ,उनने ही किया तिरस्कृत है,
माँ बापों को उनके खातिर , दिन रात तड़फते देखा है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
No comments:
Post a Comment