बुढापा एन्जॉय करिये
मन मचलता ,सदा रहता ,कामना होती कई है
कुछ न कुछ मजबूरियों बस ,पूर्ण हो पाती नहीं है
आपका चलता नहीं बस ,व्यस्तता के कभी कारण
कभी मन संकोच करता ,गृहस्थी की कभी उलझन
भावना मन में अधूरी , दबा तुम रहते उदासे
पूर्ण करलो वो भड़ासें ,जब तलक चल रही साँसे
अभी तक जो कर न पाये ,वो सभी कुछ ट्राय करिये
,बुढापा एन्जॉय करिये ,बुढापा एन्जॉय करिये
दांत से पैसा पकड़ कर ,बस जमा करते रहे तुम
अपने पर सारी कटौती ,खामखां करते रहे तुम
कोल्हू के बैल बन कर ,निभाया दायित्व अपना
मुश्किलों से भी न पूरा ,किया अपना कोई अपना
यूं ही बस मन को मसोसे ,काटी अब तक जिंदगानी
नए ढंग से अब जियो तुम,छोड़ कर आदत पुरानी
घूमिये फिरिये मज़े से ,खाइये,सजिये ,सँवरिये
बुढ़ापा एन्जॉय करिये ,बुढापा एन्जॉय करिये
जिंदगानी के सफर की ,सुहानी सबसे उमर ये
तपा दिनभर,प्रखर था जो सूर्य का ढलता प्रहर ये
सांझ की शीतल हवाएँ,दे रही तुमको निमंत्रण
क्षितिज में सूरज धरा को,कर रहा अपना समर्पण
चहचहाते पंछियों के ,लौटते दल ,नीड में है
यह मधुर सुख की घडी है,आप क्यों फिर पीड़ में है
सुहानी यादों के अम्बर में,बने पंछी , बिचरिये
बुढापा एन्जॉय करिये ,बुढापा एन्जॉय करिये
अभी तक तो जिंदगी तुम ,औरों के खातिर जिये है
जो कमाया या बचाया ,छोड़ना किसके लिए है
पूर्ण सुख उसका उठा लो ,स्वयं हित ,उपभोग करके
हसरतें सब पूर्ण करलो ,रखा जिनको रोक करके
बचे जीवन का हरेक दिन ,समझ कर उत्सव मनायें
मर गए यदि लिए मन में , कुछ अधूरी कामनाएं
नहीं मुक्ति मिल सकेगी ,सोच कर ये जरा डरिये
बुढापा एन्जॉय करिये ,बुढापा एन्जॉय करिये
मदनमोहन बाहेती'घोटू'
मन मचलता ,सदा रहता ,कामना होती कई है
कुछ न कुछ मजबूरियों बस ,पूर्ण हो पाती नहीं है
आपका चलता नहीं बस ,व्यस्तता के कभी कारण
कभी मन संकोच करता ,गृहस्थी की कभी उलझन
भावना मन में अधूरी , दबा तुम रहते उदासे
पूर्ण करलो वो भड़ासें ,जब तलक चल रही साँसे
अभी तक जो कर न पाये ,वो सभी कुछ ट्राय करिये
,बुढापा एन्जॉय करिये ,बुढापा एन्जॉय करिये
दांत से पैसा पकड़ कर ,बस जमा करते रहे तुम
अपने पर सारी कटौती ,खामखां करते रहे तुम
कोल्हू के बैल बन कर ,निभाया दायित्व अपना
मुश्किलों से भी न पूरा ,किया अपना कोई अपना
यूं ही बस मन को मसोसे ,काटी अब तक जिंदगानी
नए ढंग से अब जियो तुम,छोड़ कर आदत पुरानी
घूमिये फिरिये मज़े से ,खाइये,सजिये ,सँवरिये
बुढ़ापा एन्जॉय करिये ,बुढापा एन्जॉय करिये
जिंदगानी के सफर की ,सुहानी सबसे उमर ये
तपा दिनभर,प्रखर था जो सूर्य का ढलता प्रहर ये
सांझ की शीतल हवाएँ,दे रही तुमको निमंत्रण
क्षितिज में सूरज धरा को,कर रहा अपना समर्पण
चहचहाते पंछियों के ,लौटते दल ,नीड में है
यह मधुर सुख की घडी है,आप क्यों फिर पीड़ में है
सुहानी यादों के अम्बर में,बने पंछी , बिचरिये
बुढापा एन्जॉय करिये ,बुढापा एन्जॉय करिये
अभी तक तो जिंदगी तुम ,औरों के खातिर जिये है
जो कमाया या बचाया ,छोड़ना किसके लिए है
पूर्ण सुख उसका उठा लो ,स्वयं हित ,उपभोग करके
हसरतें सब पूर्ण करलो ,रखा जिनको रोक करके
बचे जीवन का हरेक दिन ,समझ कर उत्सव मनायें
मर गए यदि लिए मन में , कुछ अधूरी कामनाएं
नहीं मुक्ति मिल सकेगी ,सोच कर ये जरा डरिये
बुढापा एन्जॉय करिये ,बुढापा एन्जॉय करिये
मदनमोहन बाहेती'घोटू'
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