आज़ादी
शीत ऋतू में ,गरम वस्त्र में,
रखा हुआ था जिन्हें दबाकर
अपना पूरा रंग आज वो,
दिखा रहे है मौका पाकर
श्वेत चर्म चुम्बी वसनो मे ,
हुई भीग कर, तुम इतना तर
तन के सब आयाम तुम्हारे
,साफ़ हो रहे दृष्टिगोचर
बहुत दिनों तक रह बन्धन में ,
जब मिलती थोड़ी आजादी
तो अपनी मर्यादा तोड़े,
सब हो जाते है उन्मादी
घोटू
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