क्या मैं न्याय कर पारहा हूँ?
मुझे मेरे माँ बाप ने मिल कर जन्म दिया
बड़े ही प्यार से मेरा पालन पोषण किया
माँ ने ऊँगली पकड़ कर चलना सिखाया
पिताजी ने जीवनपथ में संभलना सिखाया
माँ ने उमड़ उमड़ कर बहुत सारा लाड़ लुटाया
पिताजी ने डाट डाट कर अनुशासन सिखलाया
उन्होंने पढ़ालिखा कर जिंदगी में 'सेटल'किया
हर मुश्किल में हाथ थाम कर ,मुझे संबल दिया
एक दिन पिताजी ना रहे ,एक दिन माँ भी ना रही
उनके बिना जीवन में कुछ दिनों बड़ी बेचैनी रही
मैंने उनकी तस्वीर दीवार पर टांगी ,पर इंटीरियर
डेकोरेटर की सलाह पर पत्नी ने उसे हटा दिया
फिर पूजागृह में रखी पर मृत व्यक्तियों की तस्वीर
पूजागृह में रखने से ,वास्तुशास्त्री ने मना किया
औरआजकल माताऔर पिताजी मेरी यादो में बंद है
और उन दोनों की तस्वीरें ,कबाड़ के बक्से में बंद है
पिताजी का नाम तो जब तक मैं जिन्दा हूँ ,जिंदा रहेगा
क्योकि मेरे नाम के साथ वल्दियत में वो लिखा जा रहा है
पर मेरी माँ ,जिसने मुझे नौ महीने तक कोख में रखा ,
उनका नाम कभी भी,कहीं भी ,नज़र नहीं आ रहा है
मैं वर्ष में दो बार ,एक उनकी पुण्यतिथि पर और एक श्राद्ध में ,
ब्राह्मण को भोजन करवा कर ,अपना कर्तव्य निभा रहा हूँ
पर रह रह कर मेरा दिल मुझ से एक सवाल पूछता है
कि क्या मैं सचमुच ,उनके साथ न्याय कर पा रहा हूँ?
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
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