मैं एक पेड़ हूँ
मैं सुदृढ़ सा पेड़ ,जड़े है मेरी गहरी
इसीलिए तूफानों में भी रहती ठहरी
भले हवा का वेग ,हिला दे मेरी डालें
पके अधपके ,पत्ते तोड़ ,उड़ादे सारे
पर मैं ये सब,झेला करता ,हँसते हँसते
कभी हवा से ,मैंने नहीं बिगाड़े रिश्ते
क्योंकि हवा से ही मेरी गरिमा है कायम
मैं न बदलता,लाख बदलते रहते मौसम
तेज सूर्य का,जब मुझसे,करता टकराया
धुप प्रचंड भले कितनी,बन जाती छाया
छोटे बड़े सभी पत्ते ,संग संग लहराते
मेरी डालों पर विहंग सब नीड बनाते
मुझे बहुतआनंदित करता,उनका कलरव
थके पथिक ,छाया में करते,शांति अनुभव
जड़ से लेकर ,पान पान से ,मेरा रिश्ता
सेवा भाव,दोस्ती देती ,मुझे अडिगता
मदन मोहन बाहेती;घोटू'
No comments:
Post a Comment