मन का ये भ्रमजाल हट गया
तन ऊर्जा सहमी सहमी थी
पर मन में गहमा गहमी थी
मैं बूढ़ा ना ,अभी जवाँ हूँ ,
मन में यही गलत फहमी थी
देख जाल झुर्री का तन पर ,
मन का यह भ्रमजाल हट गया
तन की अगन पड़ गयी ठंडी ,
अरमानो का जोश घट गया
देख कली को, मंडराता था
झट से मचल मचल जाता था
जब भी दिखती हुस्न ,जवानी ,
दीवानापन सा छाता था
जाल पड़ा,आँखें धुंधलाई
अब उनका दीदार घट गया
तन की अगन पड़ गयी ठंडी ,
अरमानो का जोश घट गया
गयी जवानी ,गया जमाना
शुरू हुआ अब पतझड़ आना
लेकिन मन का बूढा बंदर,
भूला नहीं गुलाट लगाना
श्वान पुच्छ सी रही आशिक़ी ,
इसका टेढ़ापन न हट गया
तन की अगन पड़ गयी ठंडी ,
अरमानो का जोश घट गया
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
No comments:
Post a Comment