बुढ़ापा छाछ होता है
दूध और जिंदगी का एक सा अंदाज होता है
जवानी दूध होती है , बुढ़ापा छाछ होता है
दूध सा मन जवानी में ,उबलता है ,उफनता है ,
पड़े शादी का जब जावन ,दही जैसा ये जमता है
दही जब ये मथा जाता ,गृहस्थी वाली मथनी में
तो मख्खन सब निकल जाता ,बदल जाता है जो घी में
बटर जिससे निकल जाता ,बटर का मिल्क कहलाता
जो बचता लस्सी या मठ्ठा , गुणों की खान बन जाता
कभी चख कर तो देख तुम ,बड़ा ही स्वाद होता है
जवानी दूध होती है , बुढ़ापा छाछ होता है
दूध से छाछ बनने के ,सफर में झेलता मुश्किल
गमाता अपना मख्खन धन ,मगर बन जाता है काबिल
न तो डर डाइबिटीज का ,न क्लोरोस्ट्राल है बढ़ता
बहुत आसानी से पचता ,उदर को मिलती शीतलता
खटाई से मिठाई तक ,करने पड़ते है समझौते
बुढ़ापे तक ,अनुभवी बन,काम के हम बहुत होते
पथ्य बनता ,बिमारी का कई, ईलाज होता है
जवानी दूध होती है ,बुढ़ापा छाछ होता है
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
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