तुम इतनी सीधी सादी क्यों हो ?
न कोई शिकवा है ,न कोई शिकायत है
हमेशा मुस्करा कर ,रहने की आदत है
न मुझमे कुछ कमी या खामियां ढूंढती हो
पति को परमेश्वर ,समझ कर पूजती हो
न कोई जिद है ,न कोई फरमाइशें है
और न ऊंची ऊंची ,कोई भी ख्वाइशे है
न कभी खीजती हो ,नहीं होती रुष्ट हो
हर एक हाल में तुम,रहती सन्तुष्ट हो
न कभी गुस्सा होती हो ,न झल्लाती हो
रूप पर अपने तुम ,कभी ना इतराती हो
काम में घर भर के,व्यस्त सदा रहती हो
परेशानियों से तुम,त्रस्त सदा रहती हो
मांग पूरी करने में,सबकी तुम हो तत्पर
दो दिन में अस्तव्यस्त ,होता है तुम बिन घर
पीछे पड़ बात अपनी ,मुझसे नहीं मनवाती क्यों हो
मेरी जान, तुम इतनी सीधी सादी क्यों हो ?
लोगबाग अक्सर अपनी बीबी से रहते है परेशान
छोटी छोटी बातों पर , मचाती है जो तूफ़ान
कभी ननद से नहीं पटती ,कभी सास से शिकायत है
सदा कुछ न कुछ रोना,रोने की आदत है
किसी को कपडे चाहिए,किसी को गहना चाहिए
किसी को फाइव स्टार होटल में रहना चाहिए
कोई बाहर खाने और घूमने फिरने की शौक़ीन होती है
कोई आलसी है,काम नहीं करती.दिन भर सोती है
कोई किटी पार्टी और दोस्तों में रहती व्यस्त है
कोई फेसबुक और व्हाट्स अप में मस्त है
कोई बिमारी का बहाना बना,पति से काम करवाती है
कोई अपने घरवाले को ,अपनी उँगलियों पर नचाती है
तुम बिना कोई प्रश्न किये ,मेरी हर बात मानती हो
मेरी आँखों के इशारों को ,अच्छी तरह पहचानती हो
तुम भी अपनी बात मनवाने ,होती नहीं उन्मादी क्यों हो
मेरी जान,तुम इतनी सीधी सादी क्यों हो ?
तुम सुशील ,समझदार और जहीन हो
तुम छरहरे बदन वाली हो, हसीन हो
फिर भी तुममे न कोई नाज़ है ,न नखरा है
तुम्हारा रूप कितना सादगी से भरा है
न तो ब्युटीपालर्र जाकर,सजना सजाना
न ही चेहरे पर तरह तरह के लोशन लगाना
तुम शर्मीली लाजवंती हो ,तुम्हारी नजरों में हया है
भगवान में आस्था है और व्यवहार में दया है
कभी ना कहना ,तुमने नहीं सीखा है
पति के दिल लूटने का तुम्हारा अपना ही तरीका है
पति के दिल की राह, आदमी के पेट से होकर है जाती
इसलिए तुम मुझे नित नए ,पकवान बनाकर हो खिलाती
तुम अन्नपूर्णा हो और तुम ही गृह लक्ष्मी हो
मैं खुशनसीब हूँ कि तुम मेरे लिए ही बनी हो
अपनी इन्ही अदाओं से तुम मुझको लुभाती क्यों हो
मेरी जान,तुम इतनी सीधी सादी क्यों हो ?
हमारी जिंदगी में ,मियां बीबी वाली नोकझोंक क्यों नहीं होती
मेरे लिए तुम्हारी कोई रोक टोक क्यों नहीं होती
इस दुनिया में लोग तरसते है पत्नी के प्यार के लिए
लेकिन मैं तरस जाता हूँ ,झगड़े और तकरार के लिए
जी करता है की तुम रूठो और मैं तुम्हे मनाऊं
तुम नखरे दिखा इठलाओ और मैं तुम्हे मख्खन लगाऊं
तुम जिद करो और मैं तुम्हे मन चाही वस्तु दिलवाऊं
कभी जी करता है तुम ब्यूटी पालर्र में सजवाऊं
पर तुम तो जैसी हो ,उस हाल में ही खुश हो
जितना भी मिलता है ,उस प्यार में ही खुश हो
पर सिर्फ मीठा खाने से भोजन में मज़ा नहीं आता
वैसे ही सिर्फ प्यार से जीवन का मज़ा नहीं आता
जिंदगी में प्यार के साथ ,झगडे का तड़का आवश्य्क है
कभी कभी प्यार बढाती ,रोज की झक झक है
पर तुम शांति प्रेमी ,झगड़ने से घबराती क्यों हो
मेरी जान,तुम इतनी सीधीसादी क्यों हो ?
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
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