तुम पीठ खुजाओ हमारी
हम संग है एक दूजे के ,तो फिर कैसी लाचारी
मैं पीठ खुजाऊँ तुम्हारी,तुम पीठ खुजाओ हमारी
इस बढ़ती हुई उमर में ,जो आई शिथिलता तन में
बढ़ गयी प्रगाढ़ता उतनी ,हम दोनों के बंधन में
हम रोज घूमने जाते ,हाथों में हाथ पकड़ कर
मिलती जब धुंधली नज़रें ,बहता है प्यार उमड़ कर
रह कर के व्यस्त हमेशा
हम रहे कमाते पैसा
बस यूं ही उहापोह में ,ये उमर बिता दी सारी
मैं पीठ खुजाऊँ तुम्हारी,तुम पीठ खुजाओ हमारी
है दर्द मेरे घुटनो में ,तुम इन पर बाम लगा दो
नस चढ़ी पिंडलियों की है ,तुम थोड़ा सा सहला दो
हमने झुकना ना सीखा ,जीवन भर रहे तने हम
अब रहा नहीं वो दमखम ,आया झुकने का मौसम
नाखून बढे पैरों के
काटे हम एक दूजे के
काम एक दूजे के आएं ,यूं हम तुम बारी बारी
मैं पीठ खुजाऊँ तुम्हारी ,तुम पीठ खुजाओ हमारी
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
No comments:
Post a Comment