चंद्रोदय से सूर्योदय तक
चंद्रोदय से सूर्योदय तक ,ऐसी मस्ती छाई
ना तुम सोयी ,ना मैं सोया ,यूं ही रात बिताई
मिलन चाह ने ,जगमग जगमग करदी रात अँधेरी
एक चाँद तो अम्बर में था ,एक बाहों में मेरी
होंठ खिले थे फूल गुलाबी ,बदन महकता चंदन
डोरे लाल लाल आँखों में ,बाहों में आलिंगन
कोमल और कमनीय कसमसी ,कंचन जैसी काया
तेरा' तू' और मेरा 'मैं 'था ,हम के बीच समाया
आया फिर तूफ़ान थम गया ,सुखद शांति थी छाई
ना तुम सोयी ,ना मैं सोया ,यूं ही रात बिताई
बिखर गयी बालों की सज्जा ,केश हुये आवारा
फ़ैल गयी होठों की लाली ,पसरा काजल सारा
कुचली थी कलियाँ गजरे की ,अलसाया सा तन था
थका थका सा ढला ढला सा ,मुरझाया आनन था
कुछ पल पहले ,गरज रहे थे ,गर्म जोश जो बादल
सब सुखांत में शांत पड़े थे ,नयना जो थे चंचल
तन का पौर पौर दुखता था ,कली कली कुम्हलाई
ना तुम सोयी ,ना मैं सोया , यूं ही रात बिताई
शुरू हुई फिर कितनी बातें ,कैसी कैसी ,कब की
कुछ कल की बीती खुशियों की ,और कुछ कड़वे अब की
बीच बीच में हाथ दबाना और सहलाना तन को
कितना प्यारा सा लगता था ,राहत देता मन को
रहे इस तरह हम तुम दोनों ,इक दूजे में उलझे
बिखरे बालों को सुलझाते ,कितने मसले सुलझे
जी करता था कभी न बीते ,ये लम्हे सुखदाई
ना तुम सोयी ,ना मैं सोया ,यूं ही रात बिताई
मदन मोहन बाहेती ;घोटू '
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