Sunday, October 14, 2018

मैं गधे का गधा ही रहा 


प्रियतमे तुम बनी ,जब से अर्धांगिनी ,

      मैं हुआ आधा ,तुम चौगुनी बन  गयी 

मैं गधा था,गधे का गधा ही रहा ,

         गाय थी तुम प्रिये ,शेरनी बन गयी 


मैं तो कड़वा,हठीला रहा नीम ही,

     जिसकी पत्ती ,निबोली में कड़वास है 

पेड़ चन्दन का तुम बन गयी हो प्रिये ,

  जिसके कण कण में खुशबू है उच्छवास है 

मैं तो पायल सा खाता रहा ठोकरें ,

    तुम कमर से लिपट ,करघनी बन गयी 

मैं गधा था ,गधे का गधा ही रहा ,

       गाय थी तुम प्रिये ,शेरनी बन गयी

 

मैं था गहरा कुवा,प्यास जिसको लगी ,

     खींच कर मुश्किलों से था पानी पिया 

तुम नदी सी बही ,नित निखरती गयी ,

     सबको सिंचित किया ,नीर जी भर दिया  

मैं तो कांव कांव, कौवे सा करता रहा ,

            तुमने मोती चुगे ,हंसिनी बन  गयी    

मैं गधा था,गधे का गधा ही रहा ,

        गाय थी तुम प्रिये, शेरनी बन गयी

 

मैं तो रोता रहा,बोझा ढोता रहा ,

         बाल सर के उड़े, मैंने उफ़ ना करी 

तुम उड़ाती रही,सारी 'इनकम' मेरी,

        और उड़ती रही,सज संवर,बन परी   

मैं फटे बांस सा ,बेसुरा  ही रहा,

          बांसुरी तुम मधुर रागिनी बन गयी

मैं गधा था ,गधे का गधा ही रहा,

          गाय थी तुम प्रिये ,शेरनी बन गयी

  

फ्यूज ऐसा अकल का उड़ाया मेरी ,

        तुम सदा मुझको कन्फ्यूज करती रही 

मैं कठपुतली बन  नाचता ही रहा ,

          मनमुताबिक मुझे यूज करती रही

मैं तो कुढ़ता रहा और सिकुड़ता रहा ,

          तुम फूली,फली,हस्थिनी  बन गयी 

मैं गधा था गधे का गधा ही रहा ,

          गाय थी तुम प्रिये ,शेरनी बन गयी

   

प्यार का ऐसा चस्का लगाया मुझे,

        चाह में जिसकी ,मैं हो गया बावला 

अपना जादू चला ,तुमने ऐसा छला ,

           उम्र भर नाचता मैं रहा मनचला 

मैं तो उबली सी सब्जी सा फीका रहा ,

        प्रियतमे दाल तुम माखनी बन गयी 

 मैं गधा था,गधे का गधा ही रहा ,

          गाय थी तुम प्रिये ,शेरनी बन  गयी 

No comments:

Post a Comment