आओ ,फटे हुए रिश्तों को सिये
आओ हम तुम ,हंसीख़ुशी का जीवन जियें
मिलजुल बैठें ,फटे हुये ,रिश्तों को सियें
सुई तीखी ,तेज, नज़र हमको आती है
देती पीड़ा ,दर्द ,चुभोई जब जाती है
किन्तु सुई वोही चुभती जब बन इंजेक्शन
रोग मिटाती ,पीड़ा हरती ,है भेषज बन
काँटा जब चुभ जाता ,होती पीर भयंकर
सुई से ही वो काँटा निकला करता ,पर
करें सही उपयोग ,ख़ुशी का अमृत पियें
मिलजुल बैठें ,फटे हुये ,रिश्तों को सियें
धागा अगर प्रेम का सुई संग जुड़ जाता
तो फिर उसके तीखेपन का रुख मुड़ जाता
सी कर फटे हुये वस्त्रों को जोड़ा करती
अगर छिद्र हो ,उसे रफू करके वो भरती
सुई ने कपडे सी, हमको सभ्य बनाया
पर हम करते ,सुई चुभो कर ,मज़ा उठाया
थोड़ा सुधरें ,दूर करें अपनी भी कमियें
मिलजुल बैठें ,फटे हुये रिश्तों को सियें
मदन मोहन बाहेती'घोटू '
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