साड़ी और जींस
१
सुन्दर,सादी सुखप्रदा साड़ी वस्त्र महान
नारी जब पहने मिले ,देवी सा सन्मान
देवी सा सन्मान ,बहुत उपयोगी ,प्यारी
सर से ले एड़ी तक देह ढके है सारी
आँचल बने रुमाल ,बाँध लो पल्ले पैसे
चादर सा ओढ़ो ,लटका लो परदा जैसे
२
साड़ी गुणगाथा सुनी ,जल कर बोली जीन
छह गज साड़ी पहनना ,होता बड़ा कठीन
होता बड़ा कठीन ,पैर बस मुझमे डालो
उछलो, कूदो ,बाइक बैठो ,मौज उड़ा लो
न तो प्रेस का झझट, ना मैं होती मैली
कटी फटी तो बन जाती फैशन अलबेली
३
होता यदि मेरा चलन ,महाभारत के काल
हार जुए में द्रोपदी ,ना होती बदहाल
ना होती बदहाल ,न कौरव कुछ कर पाते
मैं होती तो चीर दुशासन क्या हर पाते
साड़ी हंस कर बोली ,फिर क्यों होता पंगा
टांग जींस की खींच उसे कर देता नंगा
४
ऐसी हालत में जरा ,तुम्ही करो अंदाज
भरी सभा में द्रोपदी की क्या बचती लाज
की क्या बचती लाज ,कृष्ण भी क्या कर पाते
बार बार वो उसे, जींस कब तक पहनाते
ज्यों ज्यों साड़ी खिची ,कृष्ण ने चीर बढ़ाया
पस्त दुःशासन ,लज्जित द्रोपदी कर ना पाया
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
No comments:
Post a Comment