दास्ताने इश्क
थी बला की खूबसूरत ,वो हसीना ,नाज़नीं ,
देख कर के जिसको हम पे छा गयी दीवानगी
शोख थी,चंचल वो जालिम,कातिलाना थी अदा ,
छायी जिस की छवि दिल पर ,रहती सुबहो-शाम थी
इश्क था चढ़ती उमर का,सर पे चढ़ कर बोलता ,
त़ा उमर रटते रहे हम ,माला जिसके नाम की
उसने नज़रे इनायत की,जब बुढ़ापा आ गया ,
सूख जब फसलें गयी तो बारिशें किस काम की
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
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