Sunday, August 11, 2019

जिंदगी का सफर

जिंदगानी के सफर के दरमियाँ
सबसे अच्छी उम्र होती  बचपना
मन में ना चिंता कोई ना है फिकर ,
परेशानी नहीं कोई  खामखाँ
नालियों में नाव कागज की तैरा ,
नाचते थे हम बजा कर तालियां
गोदियों में हसीनो की खेलते ,
मिला करती हमको उनकी पप्पियां

बाद इसके आता ऐसा दौर है ,
खुलने लगती बंद दिल की खिड़कियां
सब पे  चढ़ता जवानी का जोश है
अच्छी लगने लगती सारी लड़कियां
इश्क़ है मन में उछालें मारता ,
ये वो आतिश है जलाता जो जिया
नशा इसका बना देता बावला ,
बड़ी मुश्किल से उतरता है मियां

और फिर बन कर के बीबी एक दिन ,
दिल में बस जाती है कोई दिलरुबाँ
फेर में फंस गृहस्थी के आदमी ,
घूमता है बैल कोल्हू का बना
चैन पल भर भी उसे मिलता नहीं ,
इतनी बढ़ जाती है  जिम्मेदारियां
पिसते  घिसते ,ढलने लगता जिस्म है ,
दिखने लगते है बुढ़ापे के निशां

भोग कर जीवन के सुख और दुःख सभी ,
शुरू बेफिक्री का होता सिलसिला
वृद्धि होती अनुभव की वृद्ध बन ,
आती जीवन जीने की हमको कला
बांटो अपना प्रेम आशीर्वाद तुम ,
सभी अपने परायों को हर दफा
चैन से जियो करो बस मौज तुम ,
बुढ़ापे का हो यही बस फ़लसफ़ा

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

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