डांडिया पर्व -एक अनुभूति
जब हम छोटे बच्चे होते है
बड़े निश्छल और निर्विकार भाव से ,
कभी हँसते है ,कभी रोते है
हर किसी से मुस्करा कर दोस्ती कर लेते है
दांतों पर अंगूठा लगा ,कट्टी कर लेते है
उंगली से उंगली मिला बट्टी कर लेते है
पर बड़े होने पर ,स्वार्थ और लालच में ,
इतने ज्यादा सन जाते है
कि भाई भाई भी ,एक दुसरे के ,
दुश्मन बन जाते है
वैसे ही ये छोटे छोटे डांडिये
जिनको अपने हाथों में लिये ,
हम किया करते रास है
मन में ख़ुशी और उल्लास है
पर ये ही डांडिये बड़े होने पर लट्ठ बन जाएंगे
लड़ाई और झगड़े में आपस में टकराएंगे
किसी के हाथ पाँव तोड़ेगे
किसी का सर फोड़ेंगे
शोर शराबा करेंगे
खून खराबा करेंगे
बन जाएंगे एक दुसरे के दुश्मन
बतलाओ क्या अच्छा है ,
लड़ने भिड़ने वाला बड़ापन
या प्यार फैलता हुआ बचपन ?
घोटू
जब हम छोटे बच्चे होते है
बड़े निश्छल और निर्विकार भाव से ,
कभी हँसते है ,कभी रोते है
हर किसी से मुस्करा कर दोस्ती कर लेते है
दांतों पर अंगूठा लगा ,कट्टी कर लेते है
उंगली से उंगली मिला बट्टी कर लेते है
पर बड़े होने पर ,स्वार्थ और लालच में ,
इतने ज्यादा सन जाते है
कि भाई भाई भी ,एक दुसरे के ,
दुश्मन बन जाते है
वैसे ही ये छोटे छोटे डांडिये
जिनको अपने हाथों में लिये ,
हम किया करते रास है
मन में ख़ुशी और उल्लास है
पर ये ही डांडिये बड़े होने पर लट्ठ बन जाएंगे
लड़ाई और झगड़े में आपस में टकराएंगे
किसी के हाथ पाँव तोड़ेगे
किसी का सर फोड़ेंगे
शोर शराबा करेंगे
खून खराबा करेंगे
बन जाएंगे एक दुसरे के दुश्मन
बतलाओ क्या अच्छा है ,
लड़ने भिड़ने वाला बड़ापन
या प्यार फैलता हुआ बचपन ?
घोटू
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