Tuesday, October 8, 2019

जब बूढ़े होते भाई बहन ,मिल बैठ किया करते बातें

आँखों आगे जीवित होती ,बचपन की कितनी हीयादें


हम सात बहन और भाई थे दिन भर करते रहते मस्ती 

तबकितनी रौनक़ रहती थी घरमें थी चहलपहलबसती

इक दूजे संग लड़ना झगड़ा करना शिकायतें मारपीट

वो ग्रूपबाज़ी ,क़ट्टीबट्टी,वो प्रेमभाव वो हारजीत

पर करे लड़ाई कोई अन्य तो सब मिलकरकरते प्रहार

दिवाली की आतिशबाज़ी वो रक्षाबंधन त्योहार

वो ताश खेलना छुपछुप कर छतपर सोनेवाली रातें

जब बूढ़े होते भाई बहन मिल बैठ कभी करते बातें



गर्मी की छुट्टी होते ही वो नानी के घर पर जाना 

वो आम चूसना जी भर कर जामुन खाना खिरनीखाना

नानी डब्बे से चुपके से लड्डू मठरी चोरी करना 

वो देर रात स्टोव जला छतपर चुपके हलवा बनना

मामा को मक्खनमार मार वो उनके संग पिक्चर जाना 

और चाटपकोड़ी ठेले पर दस दस पानीपूरी खाना 

वो स्वाद यादकर कभीकभी हम अब भीहँसतेमुसकाते

जब बूढ़े होते भाई बहन मिल बैठ कभी करते बातें


बड़े भाई और दीदी में हरदम ही रहती थी खटपट

मझली चमची थी भैया के सबकाम किया करती झटपट

छोटी भोली बन मँझले की चुग़ली लगवाया करती थी 

और आँसू बहा पिताजी से उसको पिटवाया करतीथी  

वो रोज़ सवेरे भैया का लाना जलेबियाँ गरम गरम 

वो स्वाद रसीला प्यारासा क्या कभी भूल पायेंगे हम 

बस यूँ ही शिकायत शिकवे में बीता बचपन हँसते गाते 

जब बूढ़े होते भाई बहन मिल बैठ कभी करते बातें


जब बड़ी बड़ी हो जाती थी पड़ जाते थे छोटे कपड़े 

उनके सुंदर कपड़े लेने , होते थे छोटों में झगड़े 

स्कूल की किताबें भाई की छोटे सब काम में लाते थे 

पढ़ने की दिक्कत होमवर्क चोटों का बड़े कराते थे 

ना था मोटा स्कूल बेग नस मँहगीमँहगी ट्यूशन थी 

कक्षा में प्रथम कौन आये आपस में कंपीटिशन थी 

खाने को कलाकंद मिलता जब थे अच्छे नम्बरआते 

जब बूढ़े होते भाई बहन मिल बैठ कभी करते बातें


जैसे जैसे हम बड़े हुये परिवार हो गया तितर बितर 

पढ़ने को भाई गये बाहर शादी की गये नौकरी पर

धीरे धीरे सब बहने भी शादी करवा हो गयी बिदा

वीरान हो गया वो आँगन रहती थी रौनक़ जहाँ सदा

रह गये अकेले माँ बापू सूनाहो गया चहकता घर 

आजाते लेने ख़ैर ख़बर भाई मिलने त्योहारों पर 

ये क़िस्सा नहीं हमारा है ये तो है घर घर की बातें

जब बूढ़े होते भाई बहन मिल बैठ किया करते बातें


मदन मोहन बाहेती घोटू 


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