Tuesday, January 28, 2020

जयचंदों के मारे है

कुछ तो उलटे सीधे धंधों के मारे है
विभीषणों के या जयचंदों के मारे है
शब्द शब्द को पिरो बनाते कविता माला ,
अलंकार के ,लय और छंदों के मारे है
ज्ञान नहीं पर हरेक बात में राय बताते ,
हम ऐसे कई  रायचंदो के मारे है
जादू टोना और टोटका ,वशीकरण सब ,
ऐसे कितने  दंदों फंदों के मारे है
रोज रोज ला ,नयी कबूतरी ,ऐश कर रहे ,
हमें जलाते ,उन्ही परिंदों के मारे है
नहीं पास में दाने ,अम्मा चली भुनाने ,
मंहगे मंहगे शौक ,पसंदों के मारे है
बन कर के हमदर्द ,दर्द जो देते हमको ,
बन्दे हम अपने ही बंदो के मारे है

घोटू 

No comments:

Post a Comment