Sunday, May 24, 2020

वाइरस
 १
मुक्तक
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मैं रसिक हृदय ,बचपन से ही ,शौक़ीन बहुत हूँ अमरस का
जब हुआ युवा ,तो नज़रों से ,करता था पान रूप रस का
लग गया प्रेम रस का चस्का ,पाया जब स्वाद अधर रस का
सारा रस प्रेम नदारद अब  ,डर कोरोना के वाइरस का

सवैया
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बचपन से अब तक ,आम चूसे छक छक ,
अमरस को स्वाद अब भी ,मेरे मन भाये है  
जवानी में रूप रस को पान को लग्यो चस्को
रसवन्ती कन्यायें जब ,रूपरस लुटाये है
स्वाद अधर रस को चख ,प्रेमरस डूब गयो ,
रसिक हृदय ,रस प्रेमी ,'घोटू ' कहलाये है
एक रस एसो  आयो ,सारे रस  भुलवायो ,
कोरोना के वाइरस से ,सब ही घबराये है

गुणी पाठकों ,,
भाव वही ,शब्द वही पर अलग अलग छंदों में
लिखा है -एक मुक्तक है दूसरा सवैया है -
आपको कौनसा अच्छा लगा ,कृपया प्रतिक्रिया दें
धन्यवाद
आपका
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '  

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