Sunday, May 10, 2020

कागा ,तू माने ना माने

कागा तू माने ना माने
जबसे तूने प्यास बुझाने
ऊंचा करने जल का स्तर
चुग चुग करके कंकर पत्थर
अधजल भरी हुई मटकी में
डाले थे शीतल जल पीने
डाली चोंच ,कर दिया जूंठी
तबसे उसकी किस्मत रूठी
वो माटी की मटकी प्यारी
पड़ी तिरस्कृत ,है बेचारी
पिया करते लोग आजकल
बोतल भर फ्रिज का ठंडाजल
कोई न पूछे ,बहुत दुखी मन
कागा ये सब तेरे कारण
यही नहीं वो दिन भी थे तब
घर के आगे कांव कांव जब
तू करता ,होता अंदेशा
आये कोई ना कोई सन्देशा
खबर पिया की जो मिल जाती
विरहन ,सोने चोंच मढ़ाती  
देखो अब दिन आये कैसे
मोबाईल पर आये संदेशे
पहले श्राद्धपक्ष में भोजन
करने को जब आते ब्राह्मण
पहला अंश तुझे अर्पित कर
लोग बुलाते ,तुझको छत पर
तेरे द्वारा  ,पाकर भोजन
हो जाते थे ,तृप्त पितृजन
तू है काक भुशंडी ,ज्ञानी
शनि देव का वाहन प्राणी
लोग लगे पर ,तुझे भुलाने
कागा तू ,माने न माने

मदन मोहन बहती 'घोटू ;

No comments:

Post a Comment