ऐसा कोई दिन ना बीता
चालिस दिन तालाबंदी में ,ऐसा कोई दिन ना बीता
जिस दिन मैंने कोरोना पर ,लिखी नहीं हो कोई कविता
किया शुरू में उसका वंदन ,मख्खन मारा ,तुष्ट रहेगा
यही सोच कि तारीफ़ सुनकर ,ये दुनिया को कष्ट न देगा
लेकिन उस पर असर हुआ ना ,और गर्व से फैल गया वो
चमचागिरी ,चापलूसी के ,अस्त्र चलाये ,झेल गया वो
उस रावण ने साधु रूप धर,करली हरण ,चैन की सीता
ऐसा कोई दिन न बीता ,लिखी नहीं हो कोई कविता
फिर सोचा ये कुटिल धूर्त है ,नहीं प्यार से ये समझेगा
जूते मार इसे तुम पीटो ,शायद ये तब ही सुधरेगा
ये लातों का भूत न माने ,सीधी सादी सच्ची बातें
इसको गाली दो और मारो ,जमकर घूंसे और तमाचे
तीखे तेवर देख भगेगा ,उलटे पैरो ,हो भयभीता
ऐसा कोई दिन ना बीता ,लिखी नहीं हो कोई कविता
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
चालिस दिन तालाबंदी में ,ऐसा कोई दिन ना बीता
जिस दिन मैंने कोरोना पर ,लिखी नहीं हो कोई कविता
किया शुरू में उसका वंदन ,मख्खन मारा ,तुष्ट रहेगा
यही सोच कि तारीफ़ सुनकर ,ये दुनिया को कष्ट न देगा
लेकिन उस पर असर हुआ ना ,और गर्व से फैल गया वो
चमचागिरी ,चापलूसी के ,अस्त्र चलाये ,झेल गया वो
उस रावण ने साधु रूप धर,करली हरण ,चैन की सीता
ऐसा कोई दिन न बीता ,लिखी नहीं हो कोई कविता
फिर सोचा ये कुटिल धूर्त है ,नहीं प्यार से ये समझेगा
जूते मार इसे तुम पीटो ,शायद ये तब ही सुधरेगा
ये लातों का भूत न माने ,सीधी सादी सच्ची बातें
इसको गाली दो और मारो ,जमकर घूंसे और तमाचे
तीखे तेवर देख भगेगा ,उलटे पैरो ,हो भयभीता
ऐसा कोई दिन ना बीता ,लिखी नहीं हो कोई कविता
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
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