जिंदगी -एक समझौता
आदमी सपन संजोता है ,
नहीं यदि पूरा होता है
परेशान होकर आंसू से ,
नयन भिजोता है
दोष नहीं ,पर भले बुरे का ,
बोझा ढोता है
लिखा विधाता ने है जैसा ,
वो ही होता है
जिंदगी एक समझौता है
फसल काटता वैसी जैसे
बीज वो बोता है
मिलता नहीं अगर मनचाहा ,
धीरज खोता है
होनी होकर रहती जब ,
होना होता है
होती ज्यादा ख़ुशी बावरा ,
फिर भी रोता है
जिंदगी एक समझौता है
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
आदमी सपन संजोता है ,
नहीं यदि पूरा होता है
परेशान होकर आंसू से ,
नयन भिजोता है
दोष नहीं ,पर भले बुरे का ,
बोझा ढोता है
लिखा विधाता ने है जैसा ,
वो ही होता है
जिंदगी एक समझौता है
फसल काटता वैसी जैसे
बीज वो बोता है
मिलता नहीं अगर मनचाहा ,
धीरज खोता है
होनी होकर रहती जब ,
होना होता है
होती ज्यादा ख़ुशी बावरा ,
फिर भी रोता है
जिंदगी एक समझौता है
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
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