मंहगा सोना
कमजोरी हर नारी मन की
यह चाहत स्वर्णाभूषण की
पहनो मुख पर आती रौनक
बढ़ती उसकी जा रही चमक
है भाव रोज ऊपर चढ़ता
सोना कितना मंहगा पड़ता
स्कूल के दिन है याद हमें
शैतानी वाला स्वाद हमें
कक्षा में बोअर होते थे
पिछली बेंचों पर सोते थे
पकडे ,मुर्गा बनना पड़ता
सोना कितना मंहगा पड़ता
हम दफ्तर में थे थक जाते
लोकल ट्रेनों से घर जाते
थक कर झपकी ले लेते हम
छूटा करता था स्टेशन
फिर लौट हमें आना पड़ता
सोना कितना मंहगा पड़ता
निज देश प्रेम करने जागृत
एक सेमीनार था आयोजित
मंच पर बैठे थे मंत्री जी
लग गयी आँख ,आयी झपकी
पेपर में फोटू जब छपता
सोना कितना मंहगा पड़ता
कर बचत गरीब कामवाली
ले आयी सोने की बाली
पहनी जिस दिन था त्योंहार
ले गए छीन कर झपटमार
कट गए कान ,सिलना पड़ता
सोना कितना मंहगा पड़ता
है चार माह भगवन सोते
शुभ कार्य नहीं कोई होते
मुहूरत अटका देता रोडे
तड़फा करते ,प्रेमी जोड़े
जब इन्तजार करना पड़ता
सोना कितना मंहगा पड़ता
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
कमजोरी हर नारी मन की
यह चाहत स्वर्णाभूषण की
पहनो मुख पर आती रौनक
बढ़ती उसकी जा रही चमक
है भाव रोज ऊपर चढ़ता
सोना कितना मंहगा पड़ता
स्कूल के दिन है याद हमें
शैतानी वाला स्वाद हमें
कक्षा में बोअर होते थे
पिछली बेंचों पर सोते थे
पकडे ,मुर्गा बनना पड़ता
सोना कितना मंहगा पड़ता
हम दफ्तर में थे थक जाते
लोकल ट्रेनों से घर जाते
थक कर झपकी ले लेते हम
छूटा करता था स्टेशन
फिर लौट हमें आना पड़ता
सोना कितना मंहगा पड़ता
निज देश प्रेम करने जागृत
एक सेमीनार था आयोजित
मंच पर बैठे थे मंत्री जी
लग गयी आँख ,आयी झपकी
पेपर में फोटू जब छपता
सोना कितना मंहगा पड़ता
कर बचत गरीब कामवाली
ले आयी सोने की बाली
पहनी जिस दिन था त्योंहार
ले गए छीन कर झपटमार
कट गए कान ,सिलना पड़ता
सोना कितना मंहगा पड़ता
है चार माह भगवन सोते
शुभ कार्य नहीं कोई होते
मुहूरत अटका देता रोडे
तड़फा करते ,प्रेमी जोड़े
जब इन्तजार करना पड़ता
सोना कितना मंहगा पड़ता
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
No comments:
Post a Comment