Saturday, May 22, 2021

बाय बाय कर रही जवानी 

समय सुहाना फिसल रहा है 
वक्त हाथ से निकल रहा है 
उजले बालों को काला कर 
खुद को बहलाओगे कब तक 
हमें पता कमजोर पड़ा तन 
लेकिन नहीं मानता है मन 
बाय बाय कर रही जवानी 
और बुढ़ापा देता दस्तक

शनेःशनेः  तन क्षरण हो रहा 
ना फुर्ती ना बचा जोश है
 यह सब तो नियम प्रकृति का ,
 नहीं किसी का कोई दोष है
  बचा नहीं दम इस काया में 
  फिर भी उलझे मोह माया में 
  पंचतत्व में मिल जाएंगे ,
  खाली हाथ जाएंगे हम सब 
  बाय-बाय कर रही जवानी 
  और बुढ़ापा देता दस्तक
  
  लेकिन फिर भी बार-बार हम
   देते मन को यही दिलासा 
   कोसों दूर बुढ़ापा मुझसे,
    अभी जवान हूं अच्छा खासा
     लेकिन यह एक सच है शाश्वत 
     धीरे-धीरे बिगड़ेगी गत
  धुंधली आंखें झुर्राया  तन,
  नहीं रहेगी वह पर रौनक 
  बाय-बाय कर रही जवानी 
  और बुढ़ापा देता दस्तक 

घोटू
 

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