बाय बाय कर रही जवानी
समय सुहाना फिसल रहा है
वक्त हाथ से निकल रहा है
उजले बालों को काला कर
खुद को बहलाओगे कब तक
हमें पता कमजोर पड़ा तन
लेकिन नहीं मानता है मन
बाय बाय कर रही जवानी
और बुढ़ापा देता दस्तक
शनेःशनेः तन क्षरण हो रहा
ना फुर्ती ना बचा जोश है
यह सब तो नियम प्रकृति का ,
नहीं किसी का कोई दोष है
बचा नहीं दम इस काया में
फिर भी उलझे मोह माया में
पंचतत्व में मिल जाएंगे ,
खाली हाथ जाएंगे हम सब
बाय-बाय कर रही जवानी
और बुढ़ापा देता दस्तक
लेकिन फिर भी बार-बार हम
देते मन को यही दिलासा
कोसों दूर बुढ़ापा मुझसे,
अभी जवान हूं अच्छा खासा
लेकिन यह एक सच है शाश्वत
धीरे-धीरे बिगड़ेगी गत
धुंधली आंखें झुर्राया तन,
नहीं रहेगी वह पर रौनक
बाय-बाय कर रही जवानी
और बुढ़ापा देता दस्तक
घोटू
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