लातों के भूत
हम लातों के भूत, बात से नहीं मानते
कोई सुने ना सुने, हमेशा डींग हांकते
बचपन में जब छड़ी गुरुजी की थी पड़ती
तभी हमारे सर पर, विद्या देवी चढ़ती
ऐंठे जाते कान ,बनाते मुर्गे जैसा
या कि बेंच पर रहना पड़ता खड़ा हमेशा
करती बुद्धि काम, समझ में सब कुछ आता
लंगड़ी भिन्न सवाल ,तभी सुलझाया जाता
अपना पाठ ठीक से करना, तभी जानते
हम लातों के भूत, बात से नहीं मानते
फिर इतने दिन अंग्रेजों की गुलामी
वह तो गए, न हमने छोड़ी पूछ हिलानी
चाटुकारिता करते रहना , भूल न पाये
कहां आत्मसम्मान खो गया समझ नआये
कब तक सोये यूं ही रहेंगे ,कब जागेंगे
कब उबलेगा खून, हक अपना मांगेंगे
क्यों ना रुद्र रूप दिखला ,हम भृकुटी तानते
हम लातों के भूत ,बात से नहीं मानते
मदन मोहन बाहेती घोटू
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