मैं स्वस्थ हूं
हाथ पांव है काम कर रहे चलता फिरता ,
खुश रहता हूं मौज मनाता और मस्त हूं
मैं स्वस्थ हूं
ना जोड़ों में दर्द, न मुझको बीपी शुगर ,
नहीं फूलती सांस, दमा है ना खांसी है
जमकर के मैं सुबह शाम, खाना खाता हूं
और खुराक भी मेरी अच्छी ही खासी है
ना बनती है गैस ,नहीं पाचन में दिक्कत ,
तन कर चलता, कमर जरा भी झुकी नहीं है
मेरी पूरी दिनचर्या पहले जैसी है ,
जीवन की गति कहीं जरा भी रुकी नहीं है
आया ना बदलाव वही जीवन जीता हूं ,
जिस जीवन शैली का अब तक अभ्यस्त हूं
मैं स्वस्थ हूं
माना खाने पीने पर कुछ पाबंदी है ,
फिर भी चोरी चुपके थोड़ा चख लेता हूं
आंखें थोड़ी धुंधली पर लिख पढ़ लेता हूं ,
आती-जाती सुंदरियों को तक लेता हूं
काम-धाम कुछ नहीं, सवेरे पेपर चाटू,
और रात को टीवी सदा देखता रहता
इसी तरह से वक्त काटता हूं मैं अपना,
सुनता रहता सबकी अपनी कभी न कहता
कुछ ना कुछ तो हरदम करता ही रहता हूं,
रहूं न खाली ,रखता खुद को सदा व्यस्त हूं
मैं स्वस्थ हूं
पर ऐसी ना बात कि सब पहले जैसा है ,
कुछ तन में और कुछ मन में बदलाव आ गया
मुझ में जो आया है सो तो आया ही है ,
अपनों के अपनेपन में बदलाव आ गया
क्योंकि रहा ना कामकाज का,ना कमाऊं हूं,
इसीलिए है कदर घट गयी मेरी घर में
क्यों हर वृद्ध इस तरह होता सदा उपेक्षित,
परेशान हो सोचा करता हूं अक्सर मैं
अब ना पहले सी गर्मी है नहीं प्रखरता,
ढलता सूरज हूं, अब होने लगा अस्त हूं
मैं स्वस्थ हूं
मदन मोहन बाहेती घोटू
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