माता रानी के भक्त हो गए
बंधे हुए रहते थे मोह माया बंधन में
दुनियादारी से वह आज विरक्त हो गए
कल तक रहते लिप्त भोग में और लिप्सा में,
वह देखो माता रानी के भक्त हो गए
तन पर नहीं लुनाई रही, आई जर्जरता,
निर्बलता में अंकपाश में घेर लिया है
चिकने तन पर लगी झुर्रियां झलक मारने ,
धीरे-धीरे यौवन ने मुंह फेर लिया है
अपनो का अपनापन भी है लुप्त हो रहा,
घर में हम अनचाहे से अब फक्त हो गए
कल तक रहते लिप्त भोग में और लिप्सा में
अब देखो मातारानी के भक्त हो गए
मन तो बहुत चाहता पर तन साथ ना देता,
सांप छछूंदर गति हुई कुछ कर ना सकते
फूल महकते हैं गुलशन में सुंदर सुंदर,
मन मसोसकर अपना केवल उनको तकते
कल तक हरे भरे थे छाया ,फल देते थे
पातहीन अब सूखे हुए दरख़्त हो गए
कल तक रहते लिप्त भोग मेंऔर लिप्सा में,
अब देखो माता रानी के भक्त हो गए
ऐसा ना है कि उनमें कुछ कमी नहीं है ,
रस्सी भले जल गई, लेकिन बट न गया है
अब भी सब पर रौब पुराना दिखलाते हैं ,
बात बनाने का अपनी पर हठ गया है
जिद्दी, अड़ियल, नहीं किसी की कोई सुनते,
अपने थोथे सिद्धांतों में सख्त हो गए
कल तक रहते लिप्त भोग में और लिप्सा में,
वह देखो माता रानी के भक्त हो गए
मदन मोहन बाहेती घोटू
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