शांति का अस्त्र मोबाइल
याद जमाना आता जब हमजो कुछ पल भी थे नामिलते
बेचैनी सी छा जाती थी ,और चलती थी छुरियां दिल में
पर कुछ ऐसा पलटा मौसम, बदल गया है सारा आलम,
तुम खुश अपने मोबाइल में, मैं खुश अपने मोबाइल में
दूर-दूर हम बैठे रहते ,नहीं किसी से कुछ भी कहते अपने अपने मोबाइल से ,हम दोनों ही चिपके रहते फुर्सत नहीं हमें की देखें एक दूजे को उठाकर नजरें अपनी अपनी ही दुनिया में ,खोए रहते हम बेखबरे आपस में हम बात करें क्या,कोई टॉपिक नजर ना आता
मेरा वक्त गुजर जाता है, वक्त तुम्हारा भी कट जाता
बात शुरू यदि कोई होती, तू तू मैं मैं बढ़ जाती है
मेरे हरेक काम में तुमको ,कोई कमी नजर आती है इसीलिए शांति से जीने का पाया यह रस्ता सुंदर
व्यस्त रहो और मस्त रहो तुम ,मोबाइल से खेलो दिनभर
यह तुम्हारी सुन लेता है ,दो आदेश काम करता है
उंगली से तुम इसे नचाती ,चुप रहता, तुम से डरता है
मैं ये सब ना कर सकता था इस कारण होता था झगड़ा
हम तुम बहुत सुखी है जब से, हाथों में मोबाइल पकड़ा
मोबाइल ना शांति यंत्र यह,टोका टाकी मिट जाती है
नोकझोंक सब बंद हो जातीघरमेंशांतिपसरजातीहै मौन भावना पर हो जाती,रह जाती है दिल की दिल में
तुम खुश अपने मोबाइल में, मैं कुछ अपने मोबाइल में
मदन मोहन बाहेती घोटू
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