घर
केवल ईंट और गारे का, ढांचा ना घर होता है
घर वो जिसमें घर वालों में प्रेम परस्पर होता है
वह घर असली घर जिसमें सब मिलजुल कर साथ रहे
जहां प्रेम और सद्भावों की, गंगा जमुना सदा रहे
घर वो जिसमें मेल जोल हो ,भाईचारा भरा रहे
जिसमें हरदम चहल-पहल हो, जो खुशियों से हरा रहे
सुख की हो बरसात जहां पर ,समृद्धि के फूल खिले
जहां अतिथि का स्वागत हो, बांह पसारे सभी मिले
सहनशीलता लोगों में हो, साथ निभाना सब जाने
करें सलाह ,मार्गदर्शन ले ,बात बड़ों की सब माने
घर वह जिसमें देव विराजे, भक्ति भाव हो पूजन हो जहां बुजुर्गों की सेवा हो ,आदर हो और वंदन हो
जहां पिरंडे की पूजा हो, अग्नि जहां जिमाते हो
गौ माता को अर्पित पहली रोटी यहां पकाते हो
राम लखन जैसे भाई हो, बहू रहे सीता जैसी
सास बहू को बेटी माने, सब में प्रीत रहे ऐसी
अच्छे संस्कार से शिक्षित ,हर बच्चे का बचपन हो
इर्षा बैर ना हो आपस में, सब में बस अपनापन हो
ननंद भोजाई ,देरानी और जेठानी में प्यार रहे
दादी बच्चों को बैठा कर, नई कहानी रोज कहे
वह घर,घर संतोष जहां पर नहीं कोई स्पर्धा हो
एक दूसरे की इज्जत, घर का हर प्राणी करता हो
हो हर रात दिवाली जैसी ,सब दिन हो उल्लास भरे वह घर,घर ना स्वर्ग तुल्य है , वहां देवता वास करें
मदन मोहन बाहेती घोटू
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