Monday, December 20, 2021

मैं लड़की हूं लड़ सकती हूं 

मैं लड़की हूं, लड़ सकती हूं
फिर से कुर्सी चढ़ सकती हूं

जब सत्ता ने दामन त्यागा
तब मेरा लड़कीपन जागा 
प्रोढ़ा हुई पचास बरस की ,
तब लड़की वाला हक मांगा 
सूखी नदी, मगर वर्षा में ,
फिर से कभी उमड़ सकती हूं 
मैं लड़की हूं,लड़की सकती हूं

 जब शासन था, लूटा जी भर
 अब निर्बल, तो याद आया बल 
 नौ सौ चूहे मार बिलैया 
 ने थामा धर्मों का आंचल 
 जनता में भ्रम फैलाने को ,
 कितने किस्से गढ़ सकती हूं
 मैं लड़की हूं, लड़ सकती हूं

 मेरा भाई युवा नेता है 
 अल्प बुद्धि , इक्कावन का है 
 बूढ़ी मां है सपन संजोये,
 फिर से पाने को सत्ता है 
 जल गई रस्सी, पर न गया बल,
 अब भी बहुत जकड़ रखती हूं
 मैं लड़की हूं ,लड़ सकती हूं 
 
हुई  खोखली, वंशवाद जड़ 
पर जनता भोली है,पागल 
सेवक असंतुष्ट पुराने 
चमचे नाव खे रहे केवल 
बोल बोलती बड़े-बड़े में ,
अभी बहुत पकड़ रखती हूं 
मैं लड़की हूं ,लड़ सकती हूं
फिर से कुर्सी चढ़ सकती हूं

मदन मोहन बाहेती घोटू

4 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 22 दिसंबर 2021 को लिंक की जाएगी ....

    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद!
    !

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  2. बहुत ही शानदार और लाजवाब सृजन...
    एक-एक पंक्ति बहुत ही दमदार है..

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